Chapter 7
डाकिए की कहानी, कँवरसिंह की जुबानी
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प्रश्न और उत्तर:
1. कँवरसिंह का नाम क्या है और वे कहाँ के निवासी हैं?
उत्तर: कँवरसिंह का नाम कँवरसिंह है और वे हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के नेरवा गाँव के निवासी हैं।
2. कँवरसिंह के परिवार में कौन-कौन हैं?
3. कँवरसिंह के बेटे की मृत्यु कैसे हुई?
4. आपके इलाके में ऐसी घटनाएँ क्या आम होती हैं?
उत्तर: कँवरसिंह ने बताया कि इस इलाके में ऐसी घटनाएँ असाधारण नहीं हैं। यहाँ हर साल तिरछी ढलानों या ढांकों से घास काटते समय कई औरतें गिरकर मर जाती हैं।
उत्तर: कँवरसिंह ने बताया कि इस इलाके में ऐसी घटनाएँ असाधारण नहीं हैं। यहाँ हर साल तिरछी ढलानों या ढांकों से घास काटते समय कई औरतें गिरकर मर जाती हैं।
5. क्या आपके गाँव में बसें पहुँच पाती हैं?
उत्तर: कँवरसिंह ने बताया कि उनके गाँव में अभी तक बस नहीं पहुँच पाई है और हिमाचल प्रदेश में हज़ारों ऐसे गाँव हैं जहाँ केवल पैदल ही पहुँचा जा सकता है।
उत्तर: कँवरसिंह ने बताया कि उनके गाँव में अभी तक बस नहीं पहुँच पाई है और हिमाचल प्रदेश में हज़ारों ऐसे गाँव हैं जहाँ केवल पैदल ही पहुँचा जा सकता है।
6. कँवरसिंह के बच्चे पढ़ाई कहाँ जाते हैं?
उत्तर: कँवरसिंह के बच्चे गाँव के स्कूल में पढ़ाई करते हैं। स्कूल लगभग पाँच किलोमीटर दूर है। उनकी एक लड़की दसवीं तक पढ़ी है, दूसरी बारहवीं तक पढ़ी है, तीसरी लड़की बारहवीं कक्षा में पढ़ रही है, और उनका बेटा दसवीं कक्षा में पढ़ता है।
उत्तर: कँवरसिंह के बच्चे गाँव के स्कूल में पढ़ाई करते हैं। स्कूल लगभग पाँच किलोमीटर दूर है। उनकी एक लड़की दसवीं तक पढ़ी है, दूसरी बारहवीं तक पढ़ी है, तीसरी लड़की बारहवीं कक्षा में पढ़ रही है, और उनका बेटा दसवीं कक्षा में पढ़ता है।
7. कँवरसिंह का वर्तमान कार्य क्या है?
उत्तर: कँवरसिंह पहले भारतीय डाक सेवा में ग्रामीण डाक सेवक थे, लेकिन अब वे पैकर बन गए हैं। फिर भी, वे नीली वर्दी वाले डाक सेवक ही हैं।
8. डाक सेवक को क्या-क्या काम करना पड़ता है?
उत्तर: कँवरसिंह को चिट्ठियाँ, रजिस्टरी पत्र, पार्सल, बिल, और बूढ़े लोगों की पेंशन गाँव-गाँव जाकर पहुँचाने का काम करना पड़ता है।
9.क्या अब भी डाक सेवक को संदेश पहुँचाने का काम करना पड़ता है?
उत्तर: कँवरसिंह ने बताया कि भले ही शहरों में अब संदेश भेजने के कई तरीके जैसे फोन, मोबाइल, ई-मेल आदि आ गए हों, लेकिन गाँव में अभी भी डाक ही संदेश पहुँचाने का मुख्य साधन है। गाँव में लोग डाकिया का आदर करते हैं और उनकी चिट्ठियों का इंतजार करते हैं।
10. हमारी डाक सेवा को दुनिया की सबसे बड़ी डाक सेवा क्यों कहा जाता है?
उत्तर: कँवरसिंह ने बताया कि भारत की डाक सेवा दुनिया की सबसे बड़ी डाक सेवा है और सबसे सस्ती भी। केवल पाँच रुपए में हम देश के किसी भी कोने में चिट्ठी भेज सकते हैं, और पोस्टकार्ड तो केवल पचास पैसे का होता है।
11. कँवरसिंह को अपनी नौकरी में क्या मज़ा आता है?
उत्तर: कँवरसिंह को अपनी नौकरी बहुत पसंद है। उन्हें खुशी होती है जब वे दूर नौकरी करने वाले सिपाही का मनीऑर्डर उसके घर पहुँचाते हैं और उसके माँ-बाप के खुशी भरे चेहरे देखते हैं। वे यह भी कहते हैं कि जब वे रजिस्टरी पत्र पहुँचाते हैं जिसमें रिज़ल्ट या नियुक्ति पत्र होता है, तो लोग खुश होते हैं। वे विशेष रूप से बूढ़े दादा और नानी के चेहरे पर खुशी देखते हैं जब उन्हें पेंशन के पैसे मिलते हैं।
12.क्या कँवरसिंह ने शुरू से इसी डाकघर में काम किया है?
उत्तर: नहीं, कँवरसिंह ने शुरू में लाहौल स्पीति जिले के किब्बर गाँव में तीन साल तक नौकरी की थी, जो हिमाचल का सबसे ऊँचा गाँव है। इसके बाद उन्होंने काज़ा और किन्नौर जिले में पाँच-पाँच साल नौकरी की।
13.क्या डाक पहुँचाना पहाड़ी इलाकों में आसान काम होता है?
उत्तर: नहीं, डाक पहुँचाना पहाड़ी इलाकों में काफी मुश्किल होता है। कँवरसिंह ने बताया कि किन्नौर जिले में उनकी ड्यूटी सुबह छह बजे शुरू होती थी, और वे बर्फबारी जैसी कठिन परिस्थितियों में 26 किलोमीटर रोजाना चलकर डाक पहुँचाते थे। इन इलाकों में ठंड और बर्फबारी के कारण पैरों की सुरक्षा जरूरी होती है, क्योंकि स्नोबाइट जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
15.कँवरसिंह के लिए हिमाचल में डाक पहुँचाने का अनुभव कैसा रहा है?
उत्तर: कँवरसिंह ने बताया कि हिमाचल में एक गाँव से दूसरे गाँव की दूरी अक्सर चार या पाँच किलोमीटर होती है। इन गाँवों में सिर्फ आठ से दस या कभी-कभी छह-सात घर होते हैं, इसलिए डाक पहुँचाने के लिए उन्हें काफी चलना पड़ता है।
16. पैकर के बाद कँवरसिंह का अगला प्रमोशन क्या हो सकता है?
उत्तर: कँवरसिंह ने बताया कि पैकर के बाद डाकिया बनने के लिए एक इम्तिहान पास करना पड़ता है। हालांकि, उनका वेतन वर्तमान में कम है और वे यह मानते हैं कि सारा दिन कुर्सी पर काम करने वाले बाबू का वेतन अधिक होता है।
17. कँवरसिंह के अनुसार डाकिया बनने का क्या फायदा है?
उत्तर: कँवरसिंह ने बताया कि डाकिया बनने से वेतन बढ़ सकता है, लेकिन साथ ही यह एक इम्तिहान की प्रक्रिया पर निर्भर करता है। उनका वर्तमान वेतन पैकर के रूप में कम है, और वे बाबू के वेतन को उच्च मानते हैं।