Chapter 5.2                                मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला   


1. लिखिए :


प्रश्न अ.

यशोदा अपने पुत्र को शांत करती हुई कहती हैं –

………………………………………………………….

………………………………………………………….

उत्तर :

हे चंदा जल्दी से आ जाओ। तुम्हें मेरा लाल बुला रहा है। मेरा लाल मधु मेवा स्वयं भी खाएगा और तुम्हें भी खिलाएगा।


प्रश्न आ.

निम्नलिखित शब्दों से संबंधित पद में समाहित एक-एक पंक्ति लिखिए –

(१) फल : ………………………………………………………….

(२) व्यंजन : ………………………………………………………….

(३) पान : ………………………………………………………….

उत्तर :

(a) फल : खारिक दाख खोपरा खीरा।

केरा आम ऊख रस सीरा।।


(b) व्यंजन : रचि पिराक लड्डू दधि आनौं।

तुमकौं भावत पुरी संधानौ।।


(c) पान : तब तमोल रचि तुमहिं खवावौं।

सूरदास पनवारौ पावौं।।


2. प्रश्न अ. निम्नलिखित पंक्तियों का भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए – “जलपुट आनि धरनि पर राख्यौ। गहि आन्यौ वह चंद दिखावै॥” 

उत्तर : बालक कृष्ण को माता यशोदा कह तो देती है कि, “तुम जल्दी से चुप हो जाओ। मैं चंद्रमा को तुम्हारे साथ खेलने के लिए बुला रही हूँ।” पर अब यह चंद्रमा बालक कृष्ण की पकड़ में आए कैसे..? गहि आन्यौ… पंक्ति में माँ का बड़ा ही सुंदर भाव प्रकट हुआ है। माँ अपनी युक्ति लगाती है – बड़े बर्तन में पानी रखकर चंद्रमा को अपने आँगन में उतार लेती है। यशोदा कहती है यह लो लल्ला, पकड़ लाई चंद्रमा को.. यहाँ चंद्रमा का मानवीकरण किया गया है। वात्सल्य रस की निष्पत्ति हुई है। 

प्रश्न आ. निम्नलिखित पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए – “रचि पिराक, लड्डू, दधि आनौं। तुमको भावत पुरी संधानौं।” 

उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियाँ सूरदास जी द्वारा रचित बाल लीला पद से ली गई हैं। इस पद में माता यशोदा कृष्ण को जलपान करने की मनुहार करती है। कहती है – “देखो तुम्हारे लिए क्या-क्या बना लाई हूँ। मैं एक नहीं तुम्हारी पसंद के सभी व्यंजन एक साथ बना लाई हूँ। गुझिया, लड्डू, पूरी, अचार और दही भी लाई हूँ।


3. ‘माँ ममता का सागर होती है’, इस उक्ति में निहित विचार अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : ईश्वर सभी जगह नहीं पहुँच सकता, इसलिए उसने माँ का निर्माण किया है। माँ की ममता ही व्यक्ति को जीवन में सबल और सार्थक बनाती है। माँ की ममता व्यक्ति के जीवन की वह नींव है जिसके आधार पर ही वह जीवन की इमारत खड़ी करता है। माँ की तुलना किसी से नहीं की जा सकती। वह अमूल्य हीरा है, निच्छल, निष्कपट, पवित्र। उसका प्यार व्यक्ति को धनवान बना देता है। माँ की ममता के बारे में जितना भी कुछ कहा जाए सब कम है। जैसे सागर की गहराई को नहीं नापा जा सकता वैसे ही माँ की ममता को भी कुछ शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता।


4. बाल हठ और वात्सल्य के आधार पर सूर के पदों का रसास्वादन कीजिए।

उत्तर : (i) शीर्षक : बाल लीला

(ii) रचनाकार : संत सूरदास


(iii) केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत कविता में कविवर्य संत सूरदास जी ने कृष्ण के बाल हठ एवं यशोदा मैया की वात्सल्य मूर्ति को अंकित किया है। प्रथम पद में यशोदा मैया कृष्ण का चाँद पाने का हठ भी पूरा करती है तो द्वितीय पद में यशोदा कृष्ण को कलेवा कराने हेतु दुलारती दिखाई देती है। कृष्ण की पसंद के विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजन सामने रखकर वह कृष्ण की मनुहार कर रही है।


(iv) रस-अलंकार : प्रस्तुत पद गेय शैली में लिखे गए हैं। इनमें वात्सल्य रस की निष्पत्ति हुई है।


(v) प्रतीक विधान : सूरदास स्वयं को माता यशोदा मानते हैं और अपने आराध्य को बालक कृष्ण समझकर कृष्ण के बाल हठ को पूरा कर रहे हैं तथा उन्हें भोजन कराने का प्रयत्न कर रहे हैं।


(vi) कल्पना : प्रथम पद में चाँद को शरीर धारण कर कृष्ण के साथ खेलने की कल्पना की है।


(vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव :

‘जलपुट आनि धरनी पर राख्यौ, गहि आन्यौ वह चंद दिखावै।

सूरदास प्रभु हँसि मुसक्याने, बार-बार दोऊ कर नावै।।


सूरदास जी इस पद में कह रहे हैं कि यशोदा हाथ में पानी का बरतन उठाकर लाई है। वे चंद्रमा से कहती हैं कि, ‘तुम शरीर धारण कर आ जाओ।’ फिर उन्होंने जल का पात्र भूमि पर रख दिया और कृष्ण से कहा, “देखो मैं वह चंद्रमा पकड़ लाई हूँ। तब सूरदास के प्रभु कृष्ण हँस पड़े और मुस्कराते हुए उस पात्र में बार-बार दोनों हाथ डालने लगे। कितनी सुंदर कल्पना की है यहाँ सूरदास जी ने।


(viii) कविता पसंद आने के कारण : मुझे यह कविता पसंद है, क्योंकि यहाँ वात्सल्य रस के साथ-साथ सूरदास जी का अपने आराध्य के प्रति भक्ति भाव भी स्पष्ट दिखाई देता है। उन्होंने अपने आराध्य को बालक के रूप में देखा और माता के समान स्नेह देते हुए भक्ति की है। माँ के जैसे ही वे कृष्ण को कहते हैं, “उठिए स्याम कलेऊ की जै।” यही भक्ति की चरम सीमा है।


5. जानकारी दीजिए:


प्रश्न अ.

संत सूरदास के प्रमुख ग्रंथ –

उत्तर : ‘सूरसागर’, ‘सूर सारावली’


प्रश्न आ.

संत सूरदास की रचनाओं के प्रमुख विषय –

उत्तर : कृष्ण की बाललीलाएँ (वात्सल्य रस)

सगुण और निर्गुण भक्ति (भक्ति रस)

वियोग श्रृंगार (श्रृंगार रस)


प्रश्न 6. आशय स्पष्ट कीजिए :

 (i) “गहि आन्यो वह चंद दिखावै” 

उत्तर : माँ यशोदा कृष्ण को समझा रही है पहले तो वह कहती है कि, “देखो मेरे लाल, तुम कभी रोना मत। तुम्हें खेलने के लिए मैं चंद्रमा को धरती पर बुलाऊँगी।” चंद्रमा का और बाल मन का कुछ प्राकृतिक आकर्षण है। प्रत्येक छोटा बालक चंद्रमा को प्राप्त करने (हाथ से छूने की) की अभिलाषा रखता है। माँ यशोदा एक बड़े बर्तन में पानी भरकर आँगन में रख देती है और कृष्ण से कहती है, “मेरे लाल ये देखो मैं चंद्रमा को पकड़ लाई, अब जितनी देर तक मन करे उतनी देर तक तुम चंद्रमा के साथ खेल सकते हो।’ इस पंक्ति में चंद्रमा को धरती पर ले आने का भाव व्यक्त हुआ है।


प्रश्न 7.

पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : यशोदा अपने पुत्र कृष्ण को चुप करा रही है। स्वभावत: जब बच्चे रोने लगते हैं तो माताएँ कुछ कहकर या लोरी सुनाकर उन्हें चुप कराने का प्रयास करती हैं। वैसे ही माता यशोदा कहती है कि, “तुम जल्दी से, चुप हो जाओ, मैं चंदा को बुला रही हूँ। अगर तुम रोते रहे तो चंद्रमा नीचे नहीं आएगा।

आ जाओ, चंदा जल्दी से आ जाओ। मेरा लाल तुम्हें बुला रहा है। स्वयं भी छप्पन भोग खाएगा और तुम्हें भी खिलाएगा।” यशोदा कृष्ण की पसंदीदा मक्खन, मिसरी, मेवा का नाम इसलिए लेती है कि यह सुनते ही कृष्ण चुप हो जाएँगे। “मेरे लल्ला को तुम्हारे साथ खेलना बहुत अच्छा लगेगा, हाँ, तुम चिंता ना करो, मेरा लाल तुम्हे अपने हाथ (हथेली) पर ही रखकर खेलेगा, नीचे तो कभी नहीं उतारेगा।”

यशोदा आँगन में पानी से भरा पात्र रखकर कृष्ण को चंद्रमा दिखाती है। कहती है, “लाल यह देखो, मैं चंद्रमा को पकड़कर ले आई।” सूरदास जी कहते हैं – ऐसा सुनकर मेरे प्रभु श्रीकृष्ण हँस पड़े और मुस्कराते हुए उस पात्र में बार-बार दोनों हाथ डालने लगे।


प्रश्न 8.

रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए :

(i) खोवा ………….. खाहु बलिहारी।

(ii) तुमकौं ……………. पुरी संधानौं।।

उत्तर : सहित

भावत


प्रश्न 9.

पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : प्रस्तुत पद्यांश “बाल-लीला” कविता से लिया गया है। इसके रचयिता सूरदास जी हैं। इस पद में माता यशोदा कृष्ण का लाड़ प्यार कैसे करती है, कैसे उनको जलपान कराती है आदि का विस्तार पूर्वक संवेदनाओं एवं भावनाओं के साथ वर्णन किया है।

माता यशोदा कहती है – “हे स्याम, मेरे मनमोहन उठो, जल्दी उठकर कलेवा (जलपान) कर लो। मेरे जीवन का आधार तो तुम ही हो। अर्थात् तुम्हें देखकर ही तो मैं जीवित हूँ। देखो, तुम्हारे जलपान के लिए नाना प्रकार के व्यंजन लाई हूँ।

छुहारा, दाख, खोपरा, आम, केला, ईख का रस, पूड़ी, अचार जो तुम्हें बहुत ही प्रिय है वह सब कुछ। जब पूरे व्यंजन खत्म कर दोगे तो मैं तुम्हें पान भी खिलाऊँगी।” यह माता-पुत्र के संवाद को सुनकर सूरदास जी अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं। मन-ही-मन आनंदित होते हैं कि अब उनको पान खिलाई मिलें।

Answer by Dimpee Bora