Chapter 15
दीनबन्धु 'निराला'
प्रश्न 1. निराला को ‘दीनबन्धु’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर:- निराला को ‘दीनबन्धु’ इसलिए कहा गया क्योंकि वे गरीब और वंचित लोगों की हर संभव मदद करते थे। उनके घर पर आने वाले किसी भी गरीब व्यक्ति को खाली हाथ नहीं लौटना पड़ता था। निराला उनकी देखभाल और उनकी जरूरतों का ख्याल रखते थे, मानो वे उनके बंधु (भाई) ही हों। उनकी यही दयालु और उदार प्रवृत्ति उन्हें ‘दीनबन्धु’ का सम्मान दिलाती थी।
प्रश्न 2. निराला सम्बन्धी बातें लोगों को अतिरंजित क्यों जान पड़ती हैं ?
उत्तर:- निराला के उदारता और दानशीलता के कार्य लोगों को अतिरंजित इसलिए लगते थे क्योंकि उनमें असाधारण और दुर्लभ गुण थे। वे न केवल भिखारियों और गरीबों की मदद करते थे, बल्कि अपने मित्रों और अतिथियों का भी हार्दिक स्वागत करते थे। उन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों की सेवा में समर्पित कर दिया था, जो कि आम लोगों के लिए अतिरंजक था।
प्रश्न 3. निम्न पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
(क) “जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबन्धु सम होय ।
उत्तर:- इस पंक्ति का भाव है कि जो व्यक्ति गरीब और वंचित लोगों की देखभाल करता है, उनकी मदद करता है, वह दीनबन्धु (गरीबों के मित्र) के समान महान बन जाता है। दूसरे शब्दों में, गरीबों की सेवा करना एक महान कार्य है।
(ख) “पुण्यशील के पास सब विभूतियाँ आप ही आप आती हैं।”
उत्तर:- इस पंक्ति का अर्थ है कि जो व्यक्ति पुण्य कर्म करता है, उसके पास सभी प्रकार की सम्पत्ति और विभूति स्वयं आ जाती है। उसे इन चीजों के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता। पुण्यकर्म करना ही जीवन में समृद्धि लाता है।
(ग) “धन उनके पास अतिथि के समान अल्पावधि तक ही टिकने आता था।”
उत्तर:- यह पंक्ति बताती है कि जब भी निराला के पास धन आता था, वे उसे दान में दे देते थे। वे धन को अपने पास लंबे समय तक नहीं रखते थे, बल्कि उसका उपयोग जरूरतमंदों की मदद के लिए कर देते थे। धन उनके पास महज एक अतिथि की तरह थोड़े समय के लिए ही रुकता था।
व्याकरण
निम्नलिखित श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द युग्मों का अर्थ लिखिए
- समान = बराबर । सम्मान = प्रतिष्ठा ।
- केवल = एक ही। कैवल्य = एकता का भाव।
- बन = बनना । वन = जंगल ।
- भगवान = ईश्वर । भाग्यवान = भाग्यशाली।
- छात्र = विद्यार्थी । छत्र = छाता।
- अन्य = दूसरा । अन्न = भोजन का अन्न ।
- द्रव्य = धन-पैसा । द्रव = तरल पदार्थ ।
- जगत् = संसार । जगत = कुएँ के चारो ओर बना चबूतरा ।
- अवधी = भाषा । अवधि = समय ।
- क्रम = एक के बाद एक। कर्म = कार्य ।
- आदि = इत्यादि । आदी = खाने की एक वस्तु ।
- चिंता = सोचना । चिता = मृतक को जलाने के लिए श्मशान में रखे गये लकड़ी के ढेर जिस पर मृतक को जलाया जाता है।
अनेकार्थक शब्द-कुछ ऐसे शब्द प्रयोग में आते हैं, जिनके अनेक अर्थ होते हैं । प्रसंगानुसार इनके अर्थ भिन्न-भिन्न होते हैं।
उत्तर:-
- मन – मेरा मन करता है कि मनभर चावल खरीद लूँ ।
- हर – हर व्यक्ति को कोई हर नहीं सकता है।
- कर – वह अपने कर से पुस्तक वितरक कर दिया।
- अर्थ – आज के अर्थ युग में थोड़ा धन कोई अर्थ नहीं रखता।
- मंगल – मंगल दिन भी मेरा मंगल ही रहेगा।
- पास – तुम्हारे पास वाली लड़की क्या परीक्षा में पास कर गई।
- काल – वह अल्पकाल में ही काल के गाल में चला गया ।
- पर – चिड़िया के पर कट गये, पर वह जीवित था।
इन्हें जानिए
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने निराला के लिए ‘दीनबंधु’ विशेषण का प्रयोग किया है। कुछ अन्य प्रतिष्ठित विभूतियों से संबंधित विशेषण इस प्रकार हैं
- कथा-सम्राट – मुंशी प्रेमचन्द
- मैथिल कोकिल – विद्यापति
- भारत कोकिला – सरोजनी नायडू
- देशरत्न – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
- लोकनायक – जयप्रकाश नारायण
प्रश्न 1: निराला का दीनबंधु स्वरूप क्या था और इसके क्या प्रमाण हैं?
उत्तर:निराला का दीनबंधु स्वरूप उनके पूरे जीवन और व्यवहार में स्पष्ट रूप से झलकता था। वे हमेशा गरीबों, असहायों और अपाहिजों की मदद करने के लिए तत्पर रहते थे। भिखमंगों, लँगड़े-लूले, अंधों और कोढ़ी रोगियों की सहायता करना उनके लिए धर्म और कर्तव्य था। उनके कार्य और दृष्टिकोण यह दर्शाते हैं कि वे केवल शब्दों में ही नहीं, बल्कि अपने कर्मों में भी दीनों के सच्चे मित्र थे। इसका प्रमाण उनके कलकत्ता, लखनऊ और प्रयाग में किए गए दीन-दुखियों की सेवा कार्यों से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
प्रश्न 2: निराला की सहानुभूति और सामाजिक चेतना का उदाहरण दीजिए।
उत्तर: ‘मतवाला-मण्डल’ में भिखमंगी की समस्या या अखबारों में देश में फैली आर्थिक विषमता के समाचार जब चर्चा में आते, तो निराला वहाँ मौजूद रहते और बड़े जोश और आवेश के साथ युक्तिपूर्ण तर्क प्रस्तुत करते। वे आर्थिक असमानता और समाज में दीनों की कठिनाइयों को गहराई से समझते और उनके समाधान के लिए उग्र साम्यवादी दृष्टिकोण अपनाते। इस प्रकार उनके व्यवहार और विचारों से उनके भीतर दीनों के प्रति गहरी सहानुभूति और सामाजिक न्याय की जागरूकता स्पष्ट रूप से प्रकट होती थी।
प्रश्न 3: निराला की सेवा भावना किस प्रकार उनके मनोरंजन और व्यक्तिगत सुख से ऊपर थी?
उत्तर: निराला के लिए सच्चा मनोरंजन दूसरों के दुख हराना और उन्हें सुख पहुँचाना था। चाहे कोई मित्र उन्हें सिनेमा थियेटर या अन्य साधनों से आनंद दिलाने ले जाता, वे अपने संसाधनों को भूखे और दरिद्र लोगों की सेवा में ही लगाने को प्राथमिकता देते थे। उनका जीवन स्वयं के भोग-विलास से ऊपर उठकर दीनों की जरूरतों की पूर्ति और सहायता में समर्पित था, और उन्होंने हमेशा अपनी आवश्यकताओं को पीछे रखकर दूसरों की भलाई को सर्वोच्च स्थान दिया।
प्रश्न 4: निराला के व्यक्तित्व में उदारता और दानशीलता का महत्व क्या था?
उत्तर: निराला की उदारता और दानशीलता उनके व्यक्तित्व का अहम हिस्सा थी। वे किसी भी जरूरतमंद—भिक्षुक, गरीब या अतिथि—के सामने समान भाव से उपस्थित होते और उन्हें सम्मान तथा सहायता प्रदान करते थे। सीमित संसाधनों के बावजूद भी वे तुरंत उन्हें आवश्यकता अनुसार वितरित कर देते थे। उनके जीवन में दूसरों के दुख और अभाव को अपने ऊपर लेने की प्रवृत्ति इतनी प्रबल थी कि वे इसे कर्तव्य और आनंद दोनों के रूप में मानते थे।
प्रश्न 5: निराला के जीवन में संपत्ति और धन का महत्व कितना था?
उत्तर: निराला के जीवन में धन और संपत्ति का महत्व नगण्य था। उनके पास जो भी पैसा या वस्तुएँ आतीं, वे केवल थोड़े समय के लिए उनके पास रहतीं और तुरंत जरूरतमंदों की सेवा में प्रयोग हो जातीं। उनके लिए असली मूल्य दूसरों की सहायता और सेवा में था, न कि व्यक्तिगत सुख-सुविधा या विलासिता में।
प्रश्न 6: निराला की जीवनशैली में साधुता और मितव्ययिता कैसे प्रकट हुई?
उत्तर:निराला की जीवनशैली में साधुता और मितव्ययिता स्पष्ट रूप से प्रकट होती थी। वे महंगे गद्दे, लिहाफ, शानदार फर्नीचर या कमरे की सजावट की चिंता नहीं करते थे। सीमित संसाधनों और साधारण बिस्तर के बावजूद वे संतोषपूर्वक जीवन व्यतीत करते थे। उनका जीवन यह दर्शाता है कि भौतिक सुविधाओं की कमी में भी व्यक्ति मानसिक शांति और संतोष पा सकता है।
प्रश्न 7: निराला के भोजन और वस्त्रों के प्रति दृष्टिकोण क्या था?
उत्तर: निराला के लिए भोजन और वस्त्र केवल जीवन की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन थे। वे कभी इन्हें भोग-विलास या व्यक्तिगत सुख के लिए संग्रहित नहीं करते थे। नए प्राप्त हुए कपड़े, जूते या अन्य वस्तुएँ वे तुरंत जरूरतमंदों में बाँट देते थे। यह उनके दीनबंधु स्वभाव और परमार्थ पर आधारित जीवनदर्शन का स्पष्ट प्रमाण है।
प्रश्न 8: निराला के मित्रों और अतिथियों के प्रति व्यवहार का विवरण दीजिए।
उत्तर: निराला अपने मित्रों और अतिथियों के प्रति अत्यंत उदार और स्नेही व्यवहार करते थे। वे किसी भी अतिथि या मित्र की सेवा में कभी कंजूसी नहीं दिखाते थे। उनके यहाँ आने वाले लोग हमेशा आतिथ्य और सम्मान की अनुभूति से तृप्त होकर जाते थे। मित्रों और छात्रों के प्रति उनकी संवेदनशीलता, सहयोग और प्रेम की भावना अद्वितीय और प्रेरणादायक थी।
प्रश्न 9: निराला की दृष्टि में गरीब और अभावग्रस्त लोगों का महत्व क्या था?
उत्तर: निराला गरीब और अभावग्रस्त लोगों को समाज का संवेदनशील और महत्वपूर्ण हिस्सा मानते थे। उनका अधिकतम ध्यान और प्रयास हमेशा उन्हीं की भलाई और सुविधा पर केन्द्रित रहता था। वे समाज में गरीबों के अधिकारों की रक्षा और उनकी कठिन परिस्थितियों को सुधारने के लिए सतत सक्रिय रहते थे। उनके लिए गरीबों का कल्याण ही समाज की वास्तविक समृद्धि और नैतिक उन्नति का प्रमाण था।
प्रश्न 10: निराला की दीनबंधुता किस प्रकार उनके कलकत्ता जीवन में प्रकट हुई?
उत्तर: कलकत्ता में निराला अपनी दीनबंधुता को जीवंत रूप में प्रस्तुत करते थे। वे नियमित रूप से भिखारियों, गरीबों और असहाय लोगों के पास जाते और उनकी कठिनाइयों को समझकर उन्हें हर संभव सहायता प्रदान करते। फुटपाथ, बाजार और रेलवे स्टेशनों पर वे जरूरतमंदों के लिए भोजन, वस्त्र और अन्य आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराते थे। उनके इस व्यवहार से स्पष्ट होता है कि उनका दीनबंधु स्वभाव केवल भावनात्मक नहीं बल्कि क्रियात्मक रूप में भी प्रकट होता था।
प्रश्न 11: निराला के व्यवहार में धैर्य और शांति का महत्व क्या था?
उत्तर: निराला अपने जीवन में धैर्य और शांति के प्रतीक थे। किसी भी परिस्थिति में, चाहे कोई व्यक्ति उनसे अनुचित लाभ लेने का प्रयास करे या कोई भिक्षुक सहायता माँगे, उनका मन और हृदय हमेशा शांत रहता। इस संतुलित और स्थिर मानसिकता ने उन्हें कठिन परिस्थितियों में भी संयम बनाए रखने में सक्षम बनाया। उनका यह गुण न केवल व्यक्तिगत विवेक का परिचायक था, बल्कि उनके दीनबंधु स्वभाव को और भी प्रभावशाली रूप से प्रकट करता था।
प्रश्न 12: निराला का जीवन और संपत्ति के प्रति दृष्टिकोण किस प्रकार से समाज के लिए प्रेरक है?
उत्तर: निराला का जीवन और संपत्ति के प्रति दृष्टिकोण समाज के लिए प्रेरक है क्योंकि उन्होंने यह सिखाया कि धन और भौतिक संसाधन केवल व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं, बल्कि समाज की सेवा और जरूरतमंदों की सहायता में लगाए जाने चाहिए। उनके जीवन से यह संदेश मिलता है कि संपत्ति का वास्तविक मूल्य दूसरों की भलाई और मानव कल्याण में है, और यह दृष्टिकोण आज के समाज को नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी की शिक्षा प्रदान करता है।
प्रश्न 13: निराला के व्यक्तित्व में शील और नीति का क्या योगदान था?
उत्तर: निराला के व्यक्तित्व में शील और नीति ने उन्हें समाज में आदर्श और सम्मानित व्यक्तित्व बनाया। उनकी आचार-व्यवहार की दृढ़ता और अनुशासन ने न केवल उनके जीवन को सुसंगठित बनाया, बल्कि दूसरों को भी नैतिकता, धर्म और दीनबंधुता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उनके शील और नीति का मूल उद्देश्य मानव कल्याण और कमजोरों की सेवा ही था।
प्रश्न 14: निराला की सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से विचारधारा क्या थी?
उत्तर:निराला की सामाजिक और आर्थिक सोच में समानता, न्याय और दीनबंधुता की प्रमुख भूमिका थी। वे समाज में फैली आर्थिक विषमताओं के प्रति गहरी चिंता रखते थे और उनका समाधान खोजने में सक्रिय रहते थे। गरीबों और असहायों के कल्याण के प्रति उनका दृष्टिकोण इतना गंभीर था कि वे शासन और समाज की जिम्मेदारी को इस दिशा में आवश्यक मानते थे।
प्रश्न 15: निराला का जीवन कितने हद तक आदर्शवादी था?
उत्तर: निराला का जीवन पूरी तरह से आदर्शवादी था। वे भौतिक सुख, विलासिता या व्यक्तिगत लाभ की ओर कभी आकर्षित नहीं हुए। उनका प्रत्येक कर्म और सोच दीनबंधुता और परमार्थ की भावना से प्रेरित था, जिससे उनका आदर्शवादी व्यक्तित्व पूर्णतः परिपूर्ण दिखाई देता था।
प्रश्न 16: निराला के जीवन में मित्रता और सामाजिक संबंधों की भूमिका क्या थी?
उत्तर: निराला अपने मित्रों, छात्रों और अतिथियों के प्रति अत्यंत स्नेही और सहयोगी थे। वे सामाजिक संबंधों को केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि सेवा, सहयोग और मानव कल्याण के उद्देश्य से महत्व देते थे। इस दृष्टिकोण से उनके जीवन में मित्रता और पारस्परिक सम्मान की गहरी भूमिका प्रकट होती थी।
प्रश्न 17: निराला की जीवनशैली में आत्मसंतोष और मानसिक शांति का क्या महत्व था?
उत्तर: निराला अपने जीवन में आत्मसंतोष और मानसिक शांति को सर्वोच्च प्राथमिकता देते थे। भौतिक सुख, विलासिता या व्यक्तिगत लाभ उनके लिए कभी महत्वपूर्ण नहीं थे। उनका वास्तविक संतोष और आंतरिक शांति दूसरों की सेवा, गरीबों और असहायों के कल्याण में निहित थी, जो उनके जीवन का मूल आधार बन गई थी।
प्रश्न 18: निराला का व्यवहार समाज में अन्य लोगों के लिए कैसे प्रेरक सिद्ध हुआ?
उत्तर: निराला का व्यवहार समाज में दूसरों के लिए प्रेरक इसलिए था कि उन्होंने अपने जीवन के प्रत्येक पहलू में सेवा, दान और उदारता को महत्व दिया। उनके आचरण से यह स्पष्ट होता था कि दूसरों की भलाई के लिए अपने सुख और सुविधाओं का त्याग करना ही सच्ची महानता है। समाज के लिए उनका उदाहरण यह संदेश देता है कि जीवन का वास्तविक मूल्य दूसरों की सहायता और परोपकार में निहित है।
Answer by Mrinmoee