Chapter 16
खेमा
1. कहानी ‘खेमा’ का मुख्य विषय क्या है?
उत्तर:कहानी ‘खेमा’ का मुख्य विषय बाल श्रम और समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता है। लेखक ने इस कहानी के माध्यम से यह दिखाने का प्रयास किया है कि गरीबी किस प्रकार एक मासूम बच्चे को उसके बचपन, शिक्षा और स्वतंत्रता से वंचित कर देती है। खेमा, जो उम्र में बहुत छोटा है, अपने परिवार की गरीबी के कारण होटल में काम करने को मजबूर है। उसकी मासूमियत, मेहनत और सहनशीलता पाठक के हृदय को छू जाती है। लेखक ने इस कहानी में दिखाया है कि किस प्रकार धनवान वर्ग गरीबों का शोषण करता है और संवेदनहीन होकर उनके श्रम का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए करता है। यह कहानी समाज के लिए एक दर्पण है, जो यह दिखाती है कि हमें ऐसे बच्चों को शिक्षा और स्नेह देना चाहिए, न कि उन्हें श्रमिक बना देना चाहिए।
2. खेमा कौन था और वह कहाँ काम करता था?
उत्तर:खेमा एक मासूम और निर्धन परिवार का बालक था जिसकी आयु लगभग आठ या नौ वर्ष के आसपास थी। उसका बचपन गरीबी और मजबूरी के कारण श्रम में बीत रहा था। उसके पिता ने आर्थिक संकट के कारण उसे कसारा नामक होटल मालिक को बेच दिया था। कसारा का होटल शहर में था, जहाँ खेमा को सुबह से देर रात तक काम करना पड़ता था। वह होटल में गिलास धोने, चाय-पानी पहुँचाने, फर्श साफ करने और ग्राहकों की सेवा करने जैसे छोटे-छोटे लेकिन कठिन काम करता था। इतनी कम उम्र में भी वह बिना शिकायत किए हर काम पूरी लगन से करता था। होटल के ग्राहकों के सामने वह हमेशा विनम्र और आज्ञाकारी रहता था, क्योंकि वह जानता था कि यही उसका जीवन है। कहानी के माध्यम से लेखक ने ऐसे बालकों की दयनीय स्थिति को उजागर किया है, जो गरीबी और शोषण के कारण अपने बचपन की खुशियाँ खो देते हैं।
3. कसारा ने खेमा को होटल में क्यों रखा था?
उत्तर:कसारा ने खेमा को अपने होटल में इसीलिए रखा था क्योंकि उसे अपने काम के लिए सस्ता और मेहनती मजदूर चाहिए था। खेमा एक गरीब घर का बच्चा था, इसलिए उसे बहुत कम पैसों में काम पर रखा जा सकता था। कसारा का उद्देश्य मानवता या किसी बालक के जीवन सुधार से नहीं था, बल्कि उसका मकसद अपने स्वार्थ को पूरा करना था। होटल में गिलास धोने, चाय देने, झाड़ू लगाने और ग्राहकों की सेवा जैसे कई छोटे-बड़े काम होते थे, जिन्हें अकेले संभालना कठिन था। ऐसे में खेमा जैसे गरीब बच्चे को रख लेना कसारा के लिए लाभदायक था। उसे इस बात की परवाह नहीं थी कि बच्चा पढ़ने-लिखने की उम्र में है या नहीं, वह केवल इतना चाहता था कि होटल का काम सही ढंग से चलता रहे और उसे कम खर्च में अधिक श्रम मिल जाए। इस प्रकार, कसारा ने खेमा को काम पर रखकर उसका शोषण किया और उसके बचपन को छीन लिया।
4. कहानी में ‘मुक्ताकाशी होटल’ का वर्णन कैसे किया गया है?
उत्तर:कहानी में ‘मुक्ताकाशी होटल’ का अर्थ है ऐसा होटल जो खुले आकाश के नीचे स्थित था — अर्थात् जिसके ऊपर कोई छत नहीं थी। यह होटल बहुत साधारण और अस्थायी प्रकार का था, जहाँ गरीब और श्रमिक वर्ग के लोग आकर चाय पीते या खाना खाते थे। होटल में टूटी-फूटी मेज़ें रखी थीं, एक लाल पंखा हवा देने के लिए टँगा था, और एक कोने में दूध का भगोना तथा शक्कर और चाय की डिब्बियाँ रखी हुई थीं। गिलासों को रखने के लिए एक जालीनुमा छींका लगाया गया था। वहाँ की फर्श कच्ची थी और साफ-सफाई का अभाव था। फिर भी वहाँ हमेशा चहल-पहल बनी रहती थी क्योंकि यह आम जनता की पहुँच में था। इस होटल में कसारा मालिक के रूप में और खेमा नौकर के रूप में कार्य करते थे। यह स्थान केवल व्यापार का नहीं बल्कि समाज की विषमता का प्रतीक भी था, जहाँ अमीर ग्राहक और गरीब मजदूर दोनों एक ही जगह पर अपने-अपने हिस्से की जिंदगी जी रहे थे।
5. खेमा का शारीरिक स्वरूप कैसा था?
उत्तर:खेमा एक छोटा और कमजोर शरीर वाला बालक था, जिसकी उम्र लगभग आठ से नौ वर्ष के बीच थी। उसका रंग गेहुँआ और कद लगभग साढ़े तीन फुट के करीब था। उसने खाकी रंग की निकर पहन रखी थी, जो फटी और पैबंद लगी हुई थी, साथ ही पुरानी कमीज़ भी पहनी हुई थी। उसके दूध के दाँत अभी पूरी तरह नहीं गिरे थे, जो उसकी कोमल और नाजुक उम्र को दर्शाते हैं। यह शारीरिक विवरण हमें उसकी मासूमियत, गरीबी और बचपन की कठिन परिस्थितियों का बोध कराता है। कम उम्र और कमजोर शरीर होने के बावजूद उसे दिनभर मेहनत करनी पड़ती थी, जिससे उसकी कठिनाई और संघर्ष की झलक पाठक को स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
6. खेमा का काम क्या था?
उत्तर:खेमा का काम होटल में बहुत व्यापक और थकाऊ था। वह ग्राहकों को चाय और पानी पहुँचाता, गिलास धोता, टेबलों को साफ करता और कभी-कभी ग्राहकों के लिए बीड़ी या सिगरेट भी लाता। उसकी दिनचर्या सुबह से लेकर रात तक चलती थी, और इस दौरान उसे आराम या विश्राम का पर्याप्त समय नहीं मिलता था। इसके अलावा, उसे मालिक कसारा की डाँट-फटकार और आदेशात्मक व्यवहार सहना पड़ता था। इतनी कम उम्र में इतनी जिम्मेदारी और श्रम उसकी भौतिक और मानसिक स्थिति पर भारी पड़ता था, लेकिन वह हर काम आज्ञाकारी और धैर्यपूर्वक करता रहा। कहानी में यह उसकी सहनशीलता और बालक के संघर्ष को उजागर करती है।
7. कसारा और खेमा के बीच संबंध कैसा था?
उत्तर:कसारा और खेमा का संबंध केवल मालिक और नौकर तक सीमित था, न कि स्नेह या देखभाल पर आधारित। कसारा हमेशा आदेशात्मक और कठोर स्वर में बात करता था। छोटे-छोटे कारणों पर वह खेमा को डाँटता या पीटता, जिससे बालक में भय और सहनशीलता विकसित होती थी। कसारा के लिए खेमा केवल एक काम करने वाली मशीन की तरह था, जिसका उद्देश्य होटल के कार्यों को समय पर और कम मेहनत में पूरा कराना था। इसमें दया, प्रेम या इंसानियत का कोई स्थान नहीं था। कहानी में यह संबंध समाज में बच्चों के प्रति उदासीनता और शोषण को उजागर करता है।
8. खेमा ने कसारा से चप्पल क्यों माँगी?
उत्तर:अप्रैल की तेज़ गर्मी में होटल के काम के दौरान खेमा नंगे पैर लगातार चलते रहने के कारण अपने पैरों में जलन और दर्द महसूस करने लगा। इस पीड़ा से राहत पाने के लिए उसने मालिक कसारा से चप्पल माँगी। यह उसकी एक सामान्य और स्वाभाविक आवश्यकता थी, ताकि उसे थोड़ी सुविधा और आराम मिल सके। हालांकि, इस साधारण मांग को भी कसारा ने बर्दाश्त नहीं किया और बेरहमी से डाँट दिया। इस घटना से कहानी में बालक की दयनीय स्थिति और मालिक की कठोरता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
9. कसारा ने चप्पल देने से इनकार क्यों किया?
उत्तर:कसारा के मन में किसी भी तरह की मानवीय या सहानुभूतिपूर्ण भावना नहीं थी। उसके लिए खेमा केवल एक गरीब बालक नहीं, बल्कि एक मजदूर और काम करने का साधन था। वह सोचता था कि बालक होने के बावजूद उसे किसी प्रकार की सुविधा या आराम की जरूरत नहीं है। इसी कारण उसने चप्पल देने से इनकार करते हुए कहा—“अभी रख दूँगा चप्पलें सिर पर!”—इस वाक्य में उसकी क्रूरता और कठोर मानसिकता स्पष्ट झलकती है। उसने बालक की पीड़ा या स्वास्थ्य की परवाह किए बिना केवल अपने स्वार्थ और आराम के हिसाब से निर्णय लिया। इस प्रकार कहानी बाल मजदूरी और बच्चों के प्रति समाज की उदासीनता को उजागर करती है।
10. नंगे पैर काम करने से खेमा को कैसी तकलीफ होती थी?
उत्तर:गर्म अप्रैल की धूप में ज़मीन इतनी तपती थी कि खेमा के नंगे पैर जलने लगते थे। इस कारण वह लगातार असहज और पीड़ित महसूस करता था। जब वह हैंडपंप पर गिलास धोने जाता, तो अपने पैरों पर पानी डालकर थोड़ी राहत पाने की कोशिश करता। यह केवल क्षणिक तसल्ली थी, जो उसकी पीड़ा को पूरी तरह कम नहीं कर पाती थी। इस क्रिया से स्पष्ट होता है कि खेमा अपनी असहाय स्थिति में भी खुद को आराम पहुँचाने के लिए छोटे-छोटे उपाय करता था, जबकि उसका बचपन और सुख—साधारण बच्चों की तरह—उससे दूर था।
11. ग्राहकों का रवैया खेमा के प्रति कैसा था?
उत्तर:होटल के ग्राहक भी खेमा के प्रति संवेदनशील या दयालु नहीं थे। वे उसे गालियाँ देते हुए बुलाते और उसकी उम्र, थकान या असहाय स्थिति की परवाह नहीं करते थे। उनके व्यवहार में बालक के प्रति कोई सहानुभूति या समझदारी नहीं थी। इस रवैये से यह स्पष्ट होता है कि समाज में गरीब और छोटे बच्चों के प्रति अमानवीय दृष्टिकोण प्रचलित है। बच्चे की मासूमियत, मेहनत और पीड़ा उनके लिए केवल मनोरंजन या सेवा का माध्यम बन जाती थी। कहानी इस बात को उजागर करती है कि गरीब बच्चों को न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक रूप से भी उपेक्षा और शोषण का सामना करना पड़ता है।
12. खेमा के काम करने की स्थिति कैसी थी?
उत्तर:खेमा की काम करने की स्थिति बहुत कठिन और थकाऊ थी। वह सुबह से लेकर रात तक लगातार काम करता रहता था, बिना किसी आराम या विश्राम के। उसे तेज धूप, धूल और गर्मी सहनी पड़ती थी, साथ ही ग्राहकों और मालिक की डाँट-फटकार भी झेलनी पड़ती थी। उसकी इतनी कम उम्र में यह सारी मेहनत उसे शारीरिक और मानसिक रूप से थका देती थी। न तो वह ठीक से भोजन कर पाता था और न ही पर्याप्त नींद ले पाता था। इस प्रकार उसका बचपन श्रम और कष्ट में ही बीत रहा था, जो उसके विकास और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा था।
13. खेमा के भोजन की स्थिति कैसी थी?
उत्तर:खेमा का भोजन बहुत ही सीमित और असंतोषजनक था। जब मालिक कसारा रोटी और प्याज खाता, तब वह उसके बचे हुए हिस्से या थोड़े-बहुत खाने के लिए प्रतीक्षा करता। कई बार उसे केवल दो रोटी और थोड़ा प्याज ही मिल पाता था, और कभी-कभी पर्याप्त भोजन भी नहीं मिलता था। उसका खाना अक्सर अधूरा, बेस्वाद और कम मात्रा में होता था। बावजूद इसके, छोटे बालक ने संतोष और धैर्य बनाए रखा और बिना शिकायत के भोजन करता रहा। यह उसके जीवन की कठिनाई और भूख के बावजूद सहनशीलता और अनुशासन को दर्शाता है।
14. कसारा के सो जाने पर खेमा क्या करता था?
उत्तर:जब कसारा अपने होटल के बरामदे में सोने के लिए लेट जाता, तब भी खेमा को कोई पूर्ण आराम नहीं मिल पाता था। वह थकान के कारण बीच-बीच में बैठे-बैठे नींद लेने की कोशिश करता, लेकिन उसकी नींद कभी गहरी नहीं होती। कभी-कभी उसका सिर दीवार या किसी कठोर सतह से टकरा जाता, तो वह चौंककर तुरंत उठ जाता। यह स्थिति उसके जीवन की थकान, असुरक्षा और मानसिक सतर्कता को दर्शाती है। बालक के लिए यह दिनचर्या अत्यंत कठिन और तनावपूर्ण थी, क्योंकि उसे हर समय जागरूक रहना पड़ता था और आराम पाने का समय उसे मुश्किल से ही मिलता था।
15. होटल में खेमा के स्वास्थ्य के लिए कौन-से खतरे थे?
उत्तर:होटल का पास ही एक क्लिनिक था, जहाँ रोज़ाना कई बीमार लोग आते और जाते थे। इन ग्राहकों के गिलास और अन्य बर्तनों को धोते समय खेमा के शरीर में संक्रमण फैलने का खतरा था। इसके अलावा, लगातार धूप, गर्मी और धूल भरे वातावरण में काम करना उसे शारीरिक रूप से कमजोर कर देता था। लगातार श्रम, अपर्याप्त भोजन और पर्याप्त आराम न मिलने से उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो रही थी। इस प्रकार होटल की परिस्थितियाँ उसके स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे उत्पन्न कर रही थीं और उसके बचपन के विकास को प्रभावित कर रही थीं।
16. कसारा के प्रति खेमा का भाव क्या था?
उत्तर:खेमा के मन में कसारा के प्रति मिश्रित भाव थे—एक ओर वह उससे डरता था, तो दूसरी ओर उसे उसकी सेवा करनी पड़ती थी। उसमें किसी भी प्रकार का विद्रोह या विरोधाभाव नहीं था। वह मालिक को आदरपूर्वक ‘काका’ कहता और उसके हर आदेश का पालन करता। यह उसके डर, सहनशीलता और असहायता को स्पष्ट रूप से दिखाता है। बालक की यह स्थिति उसकी मासूमियत, मजबूरी और समाज में बाल मजदूरी की कठोर सच्चाई को पाठक के सामने लाती है।
17. कसारा खेमा से किस तरह बात करता था?
उत्तर:कसारा हमेशा खेमा से कठोर, आदेशात्मक और अपमानजनक स्वर में बोलता था। वह बालक को अक्सर “ऐ रे खेमा!” कहकर पुकारता, जो स्नेहपूर्ण नहीं बल्कि तिरस्कार और हुकूमत का प्रतीक था। उसके शब्दों में दया, सहानुभूति या ममता का कोई अंश नहीं होता था। यह तरीका यह दर्शाता है कि कसारा बालक को केवल एक नौकर के रूप में ही देखता था, न कि उसकी सुरक्षा, सम्मान या भलाई की चिंता करता था। उसकी भाषा और व्यवहार में कठोरता और स्वार्थ स्पष्ट रूप से झलकती थी।
18. लेखक (कथावाचक) ने खेमा को देखकर क्या सोचा?
उत्तर:लेखक ने दो दिन तक खेमा के जीवन को नज़दीक से देखा और उसके कठिन परिश्रम, थकान और असहाय स्थिति को समझा। उसे महसूस हुआ कि देश में और भी कई बच्चे ऐसे हैं जिनका बचपन मेहनत और श्रम में व्यर्थ चला जाता है। लेखक के मन में करुणा और संवेदना जाग उठी। उसने यह ठान लिया कि वह खेमा की मदद करेगा, उसे पढ़ाई का अवसर देगा और उसके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करेगा। इस निर्णय से लेखक ने समाज में बाल मजदूरी के प्रति अपनी चिंता और सुधार की इच्छा को प्रदर्शित किया है।
19. लेखक को खेमा के बारे में क्या जानकारी मिली?
उत्तर:लेखक को पता चला कि खेमा के माता-पिता ने आर्थिक तंगी और अपने बच्चों के पालन-पोषण के बोझ से मुक्त होने के लिए अपने चार बेटों में से प्रत्येक को बेच दिया था। खेमा उनमें सबसे छोटा था। यह जानकारी लेखक के हृदय को गहराई से छू गई और उसे समाज में व्याप्त गरीबी, शोषण और असमानता की कठोर वास्तविकता का एहसास हुआ। इस तथ्य ने लेखक में करुणा और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना को जगाया और उसे यह सोचने पर मजबूर किया कि ऐसे बच्चों की मदद करना अत्यंत आवश्यक है।
20. खेमा के पिता ने उसे क्यों बेचा था?
उत्तर:खेमा के पिता बहुत गरीब थे और अपने चारों बच्चों का पालन-पोषण करने में असमर्थ थे। मजबूरी और आर्थिक तंगी के कारण उन्होंने अपने बच्चों को दूसरों के हाथों काम करने के लिए सौंप दिया। यह कदम उनकी गरीबी, जीवन की कठिनाइयों और समाज में व्याप्त अन्याय का परिणाम था। उन्होंने अपने बच्चों के भविष्य और जीवन की सुरक्षा के लिए कोई विकल्प न देख पाने के कारण यह कठिन निर्णय लिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि आर्थिक असमानता और समाजिक दबाव किस प्रकार मासूम बच्चों के जीवन को प्रभावित करता है।
21. लेखक ने खेमा से क्या प्रश्न पूछे?
उत्तर:लेखक ने खेमा से उसके जीवन और काम के बारे में जानने के लिए प्रश्न किए। उन्होंने पूछा—“तुझे तेरे सेठजी कितने रुपये देते हैं?” और “तू स्कूल नहीं जाता?”। इन सवालों पर खेमा ने अपनी मासूमियत और सहजता के साथ जवाब दिया—“मैं नहीं जानता, बापू जानते हैं। मेरी तो पढ़ने की इच्छा है पर बापू स्कूल नहीं भेजते।” यह संवाद कहानी का सबसे संवेदनशील और भावुक क्षण है, जिसमें बालक की मासूम इच्छा और उसके जीवन की कठोर वास्तविकता सामने आती है। इस बातचीत से पाठक को बाल मजदूरी की कठोरता और बच्चों के अधिकारों की अनदेखी का बोध होता है।
22. खेमा के उत्तर से लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:खेमा की मासूमियत, सादगी और सहज उत्तर सुनकर लेखक अत्यंत भावुक हो गया। उसकी आँखें भर आईं और उसने महसूस किया कि यह बच्चा केवल गरीबी का शिकार नहीं है, बल्कि शिक्षा और अवसरों से भी वंचित है। इस दृश्य ने लेखक के मन में करुणा और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना को जागृत किया। उसने ठान लिया कि वह खेमा के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगा, उसे पढ़ाई का अवसर देगा और उसके भविष्य को उज्जवल बनाने की दिशा में कदम उठाएगा। यह क्षण कहानी का एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जहाँ बाल मजदूरी की कठिन वास्तविकता और मानव संवेदना का मेल दिखता है।
23. लेखक ने खेमा से क्या वादा किया?
उत्तर:लेखक ने खेमा से प्यार और संवेदनशीलता के साथ कहा—“मेरे साथ चलेगा? स्कूल जाना, पढ़ाई करना, मेरे साथ रहना।” इस वचन में न केवल शिक्षा का अवसर देने की इच्छा व्यक्त हुई, बल्कि बालक के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का संकल्प भी झलकता है। यह वाक्य आशा और नई शुरुआत का प्रतीक है। लेखक की यह संवेदना दिखाती है कि समाज में व्याप्त अन्याय और बाल मजदूरी के खिलाफ कदम उठाना आवश्यक है, और बच्चों को उनके अधिकारों और सही जीवन का अवसर देना चाहिए।
24. कहानी के अंत में कौन-सा भाव उभरता है?
उत्तर:कहानी के अंत में मुख्य रूप से करुणा, संवेदना और आशा का भाव दिखाई देता है। लेखक ने खेमा के कठिन जीवन और बाल मजदूरी की वास्तविकताओं को देखकर उसकी मदद करने और उसे शिक्षा दिलाने का निर्णय लिया। यह कहानी पाठक को यह संदेश देती है कि प्रत्येक बच्चे को उसके अधिकार—शिक्षा, सुरक्षा और खुशहाल बचपन—प्राप्त होने चाहिए। अंत में उभरता भाव न केवल सहानुभूति बल्कि समाज सुधार और बच्चों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा भी प्रदान करता है।
25. कहानी में ‘नियति’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:कहानी में ‘नियति’ का अर्थ है भाग्य या जीवन में पहले से निर्धारित परिस्थितियाँ। यहाँ इसका प्रयोग यह दर्शाने के लिए किया गया है कि गिलास धोना, ग्राहकों की गालियाँ सहना और दिनभर मेहनत करना अब खेमा के जीवन का अपरिहार्य भाग बन चुका था। यह शब्द बालक की असहाय स्थिति और समाज में व्याप्त अन्याय की व्यथा को स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है।
26. कहानी में ‘छींका’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:कहानी में ‘छींका’ एक जालीनुमा या जालीदार उपकरण को कहते हैं, जिसमें चाय के गिलास सुरक्षित तरीके से रखे जाते हैं। होटल में खेमा गिलास धोने के बाद उन्हें इसी छींके में जमा करता था। यह उपकरण गिलासों को व्यवस्थित रखने और उन्हें आसानी से पहुँचाने में सहायक होता था। कहानी में छींका के माध्यम से बालक के दैनिक काम और उसकी मेहनत की दिनचर्या का चित्रण स्पष्ट रूप से होता है।
27. ‘क्षणिक तसल्ली’ का क्या आशय है?
उत्तर:जब खेमा अपने जलते पैरों पर पानी डालता, तो उसे थोड़ी देर के लिए राहत मिलती थी। यह राहत क्षणिक यानी थोड़े समय की थी। इससे उसकी असहाय स्थिति का पता चलता है।
28. लेखक ने कहानी में समाज की कौन-सी सच्चाई दिखाई है?
उत्तर:लेखक ने कहानी के माध्यम से समाज की कठोर सच्चाई उजागर की है कि गरीब बच्चों को उनका बचपन नहीं मिलता, बल्कि उन्हें छोटी उम्र से ही मेहनत और श्रम में झोंक दिया जाता है। अमीर और समाज के लोग इन बच्चों की पीड़ा और असहाय स्थिति के प्रति उदासीन हैं। बच्चों के अधिकार और उनकी शिक्षा की अनदेखी होती है। यह कहानी पाठक को समाज में व्याप्त अन्याय और असमानता पर सोचने और आत्मचिंतन करने के लिए प्रेरित करती है।
29. ‘बाल श्रम’ किसे कहते हैं?
उत्तर:बाल श्रम उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कोई बच्चा 14 वर्ष से कम उम्र में अपनी जीविका के लिए काम करने पर मजबूर होता है। यह केवल कानून के दृष्टिकोण से अपराध ही नहीं है, बल्कि नैतिक दृष्टि से भी अत्यंत अन्यायपूर्ण है। कहानी ‘खेमा’ इसी गंभीर सामाजिक समस्या को उजागर करती है, जहाँ एक मासूम बालक का बचपन मेहनत और श्रम में बर्बाद हो जाता है और उसे शिक्षा तथा सामान्य जीवन का अधिकार नहीं मिल पाता।
30. लेखक का बाल मजदूरी के प्रति दृष्टिकोण कैसा है?
उत्तर:लेखक बाल मजदूरी के प्रति संवेदनशील और सुधारात्मक दृष्टिकोण रखता है। वह सिर्फ समस्या का वर्णन नहीं करता, बल्कि उसका समाधान भी सुझाता है। उसकी सोच यह है कि बच्चों को शिक्षा और संरक्षण के माध्यम से इस कठिनाई और शोषण से मुक्ति दिलाई जानी चाहिए। कहानी में लेखक की यह दृष्टि सामाजिक जागरूकता और सुधार की आवश्यकता को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करती है।
31. खेमा की सबसे बड़ी इच्छा क्या थी?
उत्तर:खेमा की सबसे बड़ी और स्वाभाविक इच्छा थी पढ़ाई करना और स्कूल जाना। उसके भीतर ज्ञान और सीखने की गहरी चाह थी, लेकिन गरीबी और माता-पिता की मजबूरी ने उसे इस सामान्य अधिकार से वंचित कर दिया था। उसका यह सपना बालक की मासूमियत और मानवाधिकारों के प्रति समाज की उपेक्षा को उजागर करता है।
32. कहानी का शीर्षक ‘खेमा’ क्यों उपयुक्त है?
उत्तर:कहानी का मुख्य पात्र और केंद्रीय विषय खेमा है। उसके जीवन, कठिनाई और बाल मजदूरी की परिस्थितियों के माध्यम से ही कहानी की पूरी कथा आगे बढ़ती है। लेखक ने समाज में व्याप्त अन्याय और बच्चों की असहाय स्थिति को खेमा के अनुभवों के ज़रिए प्रदर्शित किया है। इसलिए कहानी का शीर्षक ‘खेमा’ न केवल उपयुक्त है, बल्कि इसका सार भी कहानी की थीम और संदेश के साथ पूरी तरह मेल खाता है।
33. कहानी में लेखक ने किस प्रकार मानवता का संदेश दिया है?
उत्तर:लेखक ने कहानी के माध्यम से यह संदेश दिया है कि प्रेम, संवेदना और शिक्षा किसी का जीवन बदल सकते हैं। उसने बालक खेमा को केवल दया का पात्र नहीं बल्कि एक योग्य और सशक्त भविष्य का नागरिक माना। यह दृष्टिकोण मानवता, समानता और समाज सुधार की भावना को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। लेखक की यह सोच पाठकों को प्रेरित करती है कि बच्चों के अधिकारों और उनके विकास के प्रति जिम्मेदार और संवेदनशील होना आवश्यक है।
34. कसारा का चरित्र कैसा है?
उत्तर:कसारा का चरित्र स्वार्थी, कठोर और असंवेदनशील है। वह बालक को सिर्फ एक काम करने वाला साधन मानता है, न कि उसे सम्मान या सुरक्षा देने वाला इंसान। उसके भीतर दया, ममता या न्याय की भावना नहीं है। वह समाज में व्याप्त उस सोच का प्रतीक है, जो गरीब और कमजोर बच्चों की पीड़ा को नजरअंदाज करती है और उन्हें केवल शोषण का विषय मानती है। उसकी कठोरता और आदेशात्मक व्यवहार बाल मजदूरी की क्रूर वास्तविकता को उजागर करता है।
35. कहानी से समाज के प्रति लेखक का क्या संदेश है?
उत्तर:कहानी के माध्यम से लेखक समाज को यह संदेश देता है कि प्रत्येक बच्चे को उसका बचपन और शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए। गरीबी और शोषण के खिलाफ समाज में संवेदनशीलता पैदा करना आवश्यक है। लेखक यह दिखाता है कि अगर हम अपने कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति जागरूक रहें, तो कोई भी बच्चा खेमा की तरह बाल मजदूरी का शिकार नहीं बनेगा। यह कहानी सामाजिक जागरूकता और सुधार की दिशा में एक प्रेरणा भी देती है।
36. यदि आप लेखक की जगह होते, तो क्या करते?
उत्तर:यदि मैं लेखक की जगह होता, तो मैं खेमा को अपने पास रखकर उसकी पढ़ाई और सुरक्षित जीवन सुनिश्चित करता। उसके साथ उसे प्यार और मार्गदर्शन देता ताकि उसका बचपन भी खुशहाल हो। साथ ही, समाज में बाल श्रम के खिलाफ जागरूकता फैलाता और लोगों को प्रेरित करता कि वे बच्चों को शिक्षा और सही अवसर प्रदान करें, ताकि अन्य बच्चे भी इस तरह के शोषण का शिकार न बनें।
37. बाल मजदूरी के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर:बाल मजदूरी के मुख्य कारणों में गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि और सामाजिक असमानता शामिल हैं। जब माता-पिता अपने परिवार का भरण-पोषण नहीं कर पाते और आर्थिक तंगी होती है, तो बच्चे काम करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। इसके अलावा समाज में बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी भी इस समस्या को बढ़ावा देती है। यह सभी कारण मिलकर बच्चों के जीवन को कठिन और उनका बचपन खोने वाला बना देते हैं।
38. बाल मजदूरी के क्या दुष्परिणाम होते हैं?
उत्तर:बाल मजदूरी से बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास प्रभावित होता है। वे शिक्षा और सीखने के अवसर से वंचित रह जाते हैं, जिससे उनका भविष्य असुरक्षित बन जाता है। लंबे समय तक मेहनत करने और कठिन परिस्थितियों में काम करने के कारण उनका स्वास्थ्य भी कमजोर हो जाता है। इसके अलावा, समाज भी ऐसे वंचित और अशिक्षित नागरिकों से पूर्ण प्रगति नहीं कर सकता, क्योंकि बाल मजदूरी सामाजिक विकास और समृद्धि में बाधा डालती है।
39. बाल मजदूरी समाप्त करने के लिए क्या उपाय आवश्यक हैं?
उत्तर:बाल मजदूरी को रोकने के लिए कई उपाय जरूरी हैं। सबसे पहले, बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि वे स्कूल जा सकें। गरीब परिवारों को आर्थिक सहायता देकर उन्हें अपने बच्चों को काम पर भेजने से रोका जा सकता है। बाल श्रम विरोधी कानूनों का कड़ाई से पालन और समाज में जागरूकता फैलाना भी अत्यंत आवश्यक है। इसके अलावा, बच्चों के लिए पुनर्वास केंद्र और कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ, जिससे वे भविष्य में आत्मनिर्भर और समाज के उत्तरदायी नागरिक बन सकें।
40. कहानी ‘खेमा’ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर:कहानी ‘खेमा’ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हर बच्चे को शिक्षा प्राप्त करने और स्कूल जाने का पूरा अधिकार है। किसी भी परिस्थिति—गरीबी या मजबूरी—के कारण बच्चों को श्रम में झोंकना गलत है। समाज को अपने भीतर दया, करुणा और समानता जैसे मूल्यों को विकसित करना चाहिए ताकि सभी बच्चे सुरक्षित, खुशहाल और सशक्त जीवन जी सकें। यह कहानी हमें बच्चों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के प्रति जिम्मेदारी का पाठ भी देती है।
Answer by Mrinmoee