Chapter- 10                   अपराजेय


प्र.1. यह अंश किस विषय पर आधारित है?

उ. यह अंश एक दिव्यांग व्यक्ति के संघर्ष, आत्मविश्वास और जीवन-दृष्टि पर आधारित है।


प्र.2. दिव्यांग व्यक्ति सुबह क्या करते थे?

उ. वे सुबह उठकर अपनी व्हीलचेयर पर बगीचे में बैठते थे।


प्र.3. बगीचे में बैठकर वे क्या सुनते थे?

उ. वे पक्षियों का कलरव, सूखे पत्तों के झरने की आवाज और कलियों के चटखने की ध्वनि सुनते थे।


प्र.4. ओस की कौन-सी ध्वनि वे महसूस करते थे?

उ. वे ओस की टिप-टिप और हवा के सरसराने की सूक्ष्म ध्वनियाँ सुनते थे।


प्र.5. उनके चेहरे पर कैसी आभा दिखाई देती थी?

उ. उनके चेहरे पर एक उजास, एक शांत और दिव्य प्रकाश झलकता था।


प्र.6. वे आँखें बंद करके क्या सुनते थे?

उ. वे आँखें बंद करके कजरी की तान सुनते थे।


प्र.7. दिन में वे क्या करते थे?

उ. दिन में वे अपनी रुचि के अनुसार शास्त्रीय संगीत की सी.डी. सुनते थे।


प्र.8. घर के लोग उनके प्रति कैसा व्यवहार करते थे?

उ. घर के लोग उन्हें पूरा सहयोग और स्वतंत्रता देते थे कि वे जो चाहें कर सकें।


प्र.9. ‘कालिगुला’ कौन था?

उ. कालिगुला एक क्रूर रोमन सम्राट था, जिसका उल्लेख अलवैर कामू के नाटक में है।


प्र.10. लेखक ने ‘ईश्वर’ की तुलना किससे की है?

उ. उन्होंने ईश्वर को ‘कालिगुला’ जैसा बताया है जो मनुष्य के अंग काटता जा रहा है।


प्र.11. ‘अंगों को कटवाने’ का अर्थ क्या है?

उ. यह प्रतीक है — धीरे-धीरे जीवन में शारीरिक क्षमताओं का खो जाना।


प्र.12. दिव्यांग व्यक्ति किस प्रकार का संघर्ष करते हैं?

उ. वे परिस्थितियों से शांत संघर्ष करते हैं — बिना हार माने।


प्र.13. उनका विश्वास किस बात में था?

उ. उनका विश्वास था कि जीवन का विकास पुरुषार्थ में है, आत्महीनता में नहीं।


प्र.14. ‘पुरुषार्थ’ का क्या अर्थ है?

उ. पुरुषार्थ का अर्थ है — आत्मबल, कर्मठता और संघर्षशीलता।


प्र.15. व्यक्ति ‘निर्बंध’ होना क्यों चाहता था?

उ. क्योंकि वह जीवन के सभी बंधनों से मुक्त होकर आत्मिक शांति चाहता था।


प्र.16. ‘गत्यावरोध समाप्त हों’ से क्या तात्पर्य है?

उ. जीवन की रुकावटें और सीमाएँ खत्म हों — यही इच्छा है।


प्र.17. व्यक्ति किस विश्वास से निर्भय बनता है?

उ. अपनी अपराजेय आस्था के विश्वास से वह निर्भय हो जाता है।


प्र.18. ‘अपराजेय आस्था’ का क्या अर्थ है?

उ. ऐसी आस्था जिसे कोई पराजित न कर सके, जो अडिग और स्थिर हो।


प्र.19. दिव्यांग व्यक्ति के जीवन में संगीत का क्या स्थान था?

उ. संगीत उनके जीवन में शांति और आनंद का स्रोत था।


प्र.20. वे कौन-से वाद्य या स्वर सुनना पसंद करते थे?

उ. उन्हें कजरी और शास्त्रीय गायन सुनना पसंद था।


प्र.21. पाठ में प्रयुक्त “टाँग ही काटनी है तो काट दें” वाक्य में क्या भाव है?

उ. यह वाक्य व्यक्ति की निर्भीकता और मानसिक दृढ़ता को प्रकट करता है।


प्र.22. दिव्यांग व्यक्ति ने परिस्थितियों को कैसे स्वीकार किया?

उ. उन्होंने कठिनाइयों को सहर्ष स्वीकार कर उन्हें जीवन का हिस्सा माना।


प्र.23. वे अपनी स्थिति से निराश क्यों नहीं थे?

उ. क्योंकि उन्होंने शारीरिक दुर्बलता को मानसिक शक्ति में बदल दिया था।


प्र.24. उन्होंने ‘जीवन का विकास’ किसमें माना?

उ. जीवन का विकास उन्होंने ‘पुरुषार्थ’ यानी कर्मशीलता में माना।


प्र.25. आत्महीनता क्या है?

उ. स्वयं को कमजोर या असहाय समझना ही आत्महीनता है।


प्र.26. इस पाठ का प्रमुख संदेश क्या है?

उ. जीवन की परिस्थितियों से लड़ना ही जीवन की सच्ची सार्थकता है।


प्र.27. दिव्यांग व्यक्ति के जीवन से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?

उ. कि शरीर की सीमाएँ नहीं, बल्कि मन की शक्ति ही मनुष्य को महान बनाती है।


प्र.28. ‘निर्बंध हूँ मैं’ वाक्य का क्या अर्थ है?

उ. मैं किसी बंधन में नहीं, आत्मा और विचार से पूर्णतः स्वतंत्र हूँ।


प्र.29. घरवाले उन्हें “जो चाहें करने” क्यों देते थे?

उ. क्योंकि वे उनकी खुशी और मानसिक शांति चाहते थे।


प्र.30. इस पाठ का सारांश एक वाक्य में लिखिए।

उ. दिव्यांग व्यक्ति ने जीवन की कठिन परिस्थितियों को स्वीकार कर अपने पुरुषार्थ और आस्था से उन्हें जीवन का उत्सव बना दिया।

Answer by Dimpee Bora