Lesson 3

(चरित्र संगठन)


1. सही कथन के ✓ आगे का चिह्न और गलत कथन के आगे × का चिह्न लगाओ:

(क) मनुष्य की विशेषता उसके शरीर में है। [×]

(ख) विद्या का मान सज्जन निर्णय करते हैं। [×]

(ग) मनुष्य का मूल्य उसके चरित्र में है। [✓]

(घ) विनय मन का आभूषण है। [×]

(ङ) अभ्यास के लिए बाल्यकाल उपयुक्त है। [✓]

(च) विनयशील मनुष्य अभिमान के दोष से बचा नहीं रहता। [×]

(छ) उदार पुरुष सदा दूसरों के विचारों का आदर करता है। [✓]

(ज) मेहनत करने वालों में कोई दैवी प्रभा नहीं रहती। [×]

(झ) राजा हरिश्चंद्र धैर्य का ज्वलंत उदाहरण है। [✓]

(ञ) सहकारिता से दूसरों को वंचित रखना कृतज्ञता है। [×]


2. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:

(क) मनुष्य की विशेषता किसमें है?

उत्तर: मनुष्य की विशेषता चरित्र में है।


(ख) विद्या का भूषण क्या है?

उत्तर: विद्या का भूषण विनय है। 


(ग) श्रीमदभगवदगीता में विनय के संबंध में क्या कहा गया है?

उत्तर: श्रीमदभगवदगीता में विनय को "विद्या-विनय सम्पन्न" कहा गया है।


(घ) विनय के अभाव में क्या प्रकट होता है?

उत्तर: विनय के अभाव में एक प्रकार का खोखलापन प्रकट होता है।


(ङ) उदारता का अभिप्राय क्या है?

उत्तर: उदारता का अभिप्राय  नि:संकोच भाग से दूसरों के प्रति उदार भाव रखना है।


(च) परम उदार लोगों की विशेषता क्या है?

उत्तर: परम उदार लोगों की विशेषता यह है कि वे अपने साथियों के साथ आदर भाव से रहते हैं। तथा उनकी भूलों को, उनके हठ तथा बैर को स्वयं उपेक्षापूर्वक क्षमा कर देते हैं।


(छ) विज्ञ लोगों को किस से दूर रहना चाहिए?

उत्तर: विज्ञ लोगों को लालच से दूर रहना चाहिए।


(ज) शक्ति-संपन्न और प्रभावशाली बनने का सामर्थ्य किसमें होता है?

उत्तर: जो लोग लालच से बच कर अपनी इच्छाओं को रोक सकते हैं, वही शक्ति संपन्न और प्रभावशाली बनने में सामर्थ्य होते हैं।


(झ) धैर्य किसे कहते हैं?

उत्तर: कठिनाइयों में चित्त यानी हृदय  को स्थिर रखना ही धैर्य कहलाता है।


(ञ) श्रीरामचंद्रजी के जगत वंदनीय होने का कारण प्रस्तुत पाठ के आधार पर लिखो।

उत्तर: राज्याभिषेक के कारण उनको हर्ष नहीं हुआ और वनवास जाने से  भी वे दुखी नहीं हुए। यही कारण है कि श्रीरामचंद्रजी जगत वंदनीय है।


(ट) मनुष्य की एकता एवं समाज की स्थिति का मूल क्या है?

उत्तर: सहकारिता ही भविष्य की एकता एवं समाज की स्थिति का मूल है।


(ठ) सत्य बोलने के संबंध में चरित्रवान व्यक्ति को क्या करना चाहिए?

उत्तर: सत्य बोलने के संबंध में चरित्रवान व्यक्ति को अपनी आत्मा में इतना बल रखना चाहिए कि वह सत्य को निर्भयता के साथ कह सके।


(ड) प्रस्तुत पाठ के अनुसार हमारा कर्तव्य क्या है?

उत्तर: प्रस्तुत पाठ के अनुसार हमारा कर्तव्य है कि हानि पहुंँचाने वाले बातों से खुद को बचाए रखें और जो हमारा कहने और करने का कर्तव्य है उसको सौ हानी उठाकर भी करना चाहिए। तथा यही कर्त्तव्यपरायणता है।


(ढ) कर्तव्य-पालन के लिए क्या आवश्यक है?

उत्तर: कर्तव्य पालन के लिए प्रतिक्षण अभ्यास आवश्यक है।


3. संक्षिप्त उत्तर दो:

(क) सच्चरित्र के लिए कौन-से गुण आवश्यक है? पाठ के आधार पर लिखो।

उत्तर: सच्चरित्र के लिए विनय, उदारता, लालच में न पड़ना, धैर्य,  सत्य-भाषण, वचन का पति पालन करना और कर्तव्यपरायणता यह सभी गुणों का होना आवश्यक है।


(ख)' विद्या-विनय सम्पन्न'-का आशय स्पष्ट करते हुए यह बताओ कि चरित्र निर्णय में विधायक की क्या भूमिका है?

उत्तर: श्रीमदभगवतगीता में विनय को ब्राह्मण का विशेषण 'विद्या-विनय सम्पन्न' कहांँ है। जिसका आशय है कि विनय विद्या का भूषण है। बिन विनय के विद्या को हासिल नहीं किया जा सकता। अर्थात विद्या की शोभा तभी बढ़ेगी जब उसमें विनय होगा।

       चरित्र निर्माण में विनायक की भूमिका अहम है। बिना विनय के जिसने भी विद्या अर्जन की हो वह विद्या कुछ काम का नहीं। ऐसे विद्या से कोई लाभ नहीं होता। इसलिए चरित्र निर्माण तभी संभव हो सकता है जब विद्या के साथ-साथ विनय हो। विनय केवल विद्या को ही नहीं वरन धन और बल दोनों को भी शोभा देती है।


(ग) उदारता किस प्रकार चरित्र-निर्माण में सहायक बनती है?

उत्तर: उदारता, चरित्र निर्माण का ही एक विशेष गुण है जो मनुष्य को एक सुसज्जित चरित्रवान इंसान बनाने में सहायता करता है। उदारता का अभिप्राय दूसरों के प्रति उदार भाव रखना है। उदार पुरुष सदा दूसरों के विचारों का आदर करता है और समाज में सेवक भाव से रहता है। और जिसमें सच्ची उदारता होती है वह दूसरों की भावों का उतना ही आदर करता है जितना खुद का करता है। ऐसे सच्चे उदारवादी लोग दूसरों के साथ आदर भाव से रहते हैं और उनके द्वारा किए गए भूलों को स्वयं उपेक्षापूर्वक क्षमा कर देते हैं। अतः इस प्रकार उदारता चरित्र निर्माण में सहायक बनती है।


(घ) लालच के संदर्भ में ईसा और श्रीरामचंद्रजी के बारे में क्या कहा गया है?

उत्तर: लालच के संदर्भ में ईसा और श्रीरामचंद्रजी के बारे में कहा गया है कि ईसाई लोग लालच से बचने के लिए प्रार्थना करते हैं कि "या यीशु! मुझे इम्तहान में मत डाल।" अर्थात वह थोड़े से लालच से भी बचने का प्रयत्न करते हैं। दूसरी ओर हमारे यहांँ भगवान श्रीरामचंद्रजी का ज्वलंत उदाहरण है कि उन्होंने साम्राज्य का लालच थोड़ा, पर कर्तव्य से विमुख न हुए।


(ङ) हमें अपनी आध्यात्मिकता का गौरव बनाये रखने में धैर्य किस प्रकार सहायता करता है?

उत्तर: हमें अपनी आध्यात्मिकता का गौरव बनाए रखने में धैर्य की भूमिका अहम है। क्योंकि धैर्य ही कठिन से कठिन स्थितियों में चित्त को स्थिर रखता है। एवं कठिनाइयों के दुखों पर विजय दिलाने में सहायक सिद्ध होता है। कठिन से कठिन स्थिति में प्रसन्ना रहना आत्मा की उच्चता का सूचक है। इस प्रकार हमें अपनी आध्यात्मिकता का गौरव बनाए रखने में धैर्य सहायता करता है।


(च) 'आत्मा का उद्धार आत्मा से ही होता है' - इस संदर्भ में कर्तव्यपरायणता की क्या भूमिका है?

उत्तर: अगर हमें आत्मा का उद्धार करना है तो अपने कर्तव्य का पालन निरंतर करते रहना होगा, तभी हमारी आत्मा शुद्ध एवं पवित्र होगी। और अपने कर्तव्य पालन के लिए प्रतिक्षण अभ्यास भी आवश्यक है। अगर हम किसी की निंदा या आलस्यवश कर्तव्य का पालन नहीं करते हैं तब हमारी उन्नति नहीं होगी, बल्कि हमारा पतन होता चला जाएगा। इसलिए हमें हमारे अंदर छुपे आत्मा को जगाना होगा और अपनी उन्नति हेतु कर्तव्य का पालन करना होगा। तभी जाकर आत्मा का उद्धार आत्मा से होगा।


भाषा अध्ययन:

I. रेखांकित शब्द का लिंग बदलकर खाली स्थान में लिखो:

(क) विवाह में (देवर) के साथ…........ ने भी नृत्य किया।

उत्तर: विवाह में देवर के साथ देवरानी ने भी नित्य किया।


(ख) (मोरनी) को देखकर.......... नाचने लगा।

उत्तर: मोरनी को देखकर मोर नाचने लगा।


(ग) बिल्ली को आते देखकर पहले........... भागा फिर (चुहिया) आगी।

उत्तर: बिल्ली को आते देखकर पहले चूहा भगा फिर चुहिया भागी।


(घ) सर्वेश ने (नाई) से बाल कटवाए और प्रमिला ने......... से।

उत्तर: सर्वेश ने नाई से बाल कटवाए और प्रमिला ने नाइन से।


(ङ) (पंडिताइन) ने सामान रखा और .......... ने पूजा कराई।

उत्तर: पंडिताइन ने सामान रखा और पंडित ने पूजा करवाई।


II. लिंग संबंधी अशुद्धियां दूर करवा कर फिर से लिखो:

(क) कवि कविता सुना रही है।

उत्तर: कवि कविता सुना रहा है।


(ख) वहांँ दो लड़कियांँ बैठे हैं।

उत्तर: वहांँ दो लड़कियांँ बैठी है।


(ग) मोहन बहुत अच्छी अभिनेत्री है।

उत्तर: मोहन बहुत अच्छा अभिनेता है।


(घ) गाय खेत में घुस गया।

उत्तर: गाय खेत में घुस गयी।


(ङ) हमारे सम्राट अत्यंत विदुषी है।

उत्तर: हमारे सम्राट अत्यंत विदुर है।


III. अर्थ-भेद स्पष्ट करते हुए वाक्य बनाओ:

i.अंबर (आकाश): आकाश में आज काफी घने बादल छाए हुए हैं।


ii.अंबर (वस्त्र): मोहित ने सन्यासी का वस्त्र धारण किया।


iii.सोम (स्वर्ग):  स्वर्ग की अप्सराएंँ बहुत सुंदर है।


iv.सोम (चंद्रमा): चंद्रमा की रोशनी चारों ओर फैल गई।


v.दक्षिण (दाहिना):  उसने मुझे उसका दाहिना हाथ दिखाया।


vi.दक्षिण (एक दिशा): वे लोग दक्षिण दिशा से आ रहे हैं।


vii.योग (ध्यान): ऋषि मुनि अपने योग में मग्न है।


Reetesh Das

(M.A in Hindi)


Post ID : DABP002831