मुद्रा और साख


1. मुद्रा के प्रयोग से वस्तुओं के विनिमय में सहूलियत कैसे आती है?

उत्तर: मुद्रा के प्रयोग से वस्तुओं के विनिमय में सहूलियत इस प्रकार आती है:

  • मध्यवर्ती साधन: मुद्रा वस्तु विनिमय का एक आसान और सुविधाजनक माध्यम बनाती है। पहले के वस्तु विनिमय प्रणाली में दोनों पक्षों की आवश्यकताएँ मेल खानी जरूरी थी (अर्थात, दोनों पक्षों को एक ही वस्तु की आवश्यकता होती थी)। लेकिन मुद्रा इस समस्या को समाप्त करती है, क्योंकि अब कोई भी व्यक्ति मुद्रा के रूप में भुगतान करके अपनी ज़रूरत की वस्तु या सेवा खरीद सकता है।

  • लचीलापन: मुद्रा के माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपने लिए आवश्यक वस्तु या सेवा आसानी से प्राप्त कर सकता है, चाहे वह किसी अन्य व्यक्ति से संबंधित हो या नहीं। मुद्रा को कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

  • प्रत्येक व्यक्ति के लिए मान्य: मुद्रा सरकार द्वारा जारी की जाती है और यह वैध रूप से मान्य होती है, इसलिए इसे सभी लोग एक समान रूप से स्वीकार करते हैं, जो विनिमय के लिये विश्वसनीय बनाती है।


2. क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण सोच सकते हैं, जहाँ वस्तुओं तथा सेवाओं का विनिमय या मजदूरी की अदायगी वस्तु विनिमय के जरिए हो रही है?

उत्तर: वस्तु विनिमय (Barter System) में मुद्रा का प्रयोग नहीं होता, बल्कि सीधे वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान होता है। ऐसे कुछ उदाहरण:

  • कृषि क्षेत्र: पुराने समय में किसान अपनी उपज जैसे गेहूँ, चावल, दूध आदि को अन्य कृषि उत्पादों के लिए बदलते थे। उदाहरण के लिए, एक किसान अपनी गेहूँ की फसल को बकरियों के बदले में बदल सकता था।

  • शिल्पकला और सेवाएँ: एक कारीगर अपनी बनाई हुई चीज़ों (जैसे कपड़े, बर्तन) को अन्य सेवाओं या उत्पादों के बदले में ले सकता था। उदाहरण स्वरूप, एक दर्ज़ी अपनी सिलाई सेवाओं को एक किसान से अनाज के बदले में प्राप्त कर सकता था।

  • मजदूरी: अगर किसी व्यक्ति को खेत में काम करने के लिए मजदूरी दी जाती है, तो वह मजदूरी नकद के बजाय अनाज या अन्य सामान के रूप में मिल सकती थी। जैसे, एक किसान खेतों में काम करने के बदले अपनी फसल से कुछ हिस्सा मजदूर को दे सकता था।

  • दूसरी प्रकार की सेवाएँ: एक डॉक्टर अपनी चिकित्सा सेवाओं के बदले में किसी अन्य व्यक्ति से दवाइयाँ या अन्य ज़रूरी सामान ले सकता था। या फिर एक शिक्षक अपने शैक्षिक सेवाओं का भुगतान किसी अन्य सेवा के रूप में ले सकता था।


❤मुद्रा के आधुनिक रूप

उत्तर: मुद्रा के आधुनिक रूप में कागज़ के नोट और सिक्के शामिल होते हैं, जो केवल विनिमय के लिए इस्तेमाल होते हैं, और जिनका खुद का कोई भौतिक मूल्य नहीं होता (जैसे सोना, चाँदी)।
यह मुद्रा अब केवल सरकार द्वारा अधिकृत होती है और यह वैश्विक स्तर पर सभी लेन-देन में स्वीकार्य होती है। बैंक खाते और डिजिटल भुगतान जैसी आधुनिक विधियाँ भी मुद्रा के रूप में काम करती हैं, जहाँ नकद की बजाय खाते से चैक, डेबिट/क्रेडिट कार्ड, और ऑनलाइन लेन-देन के ज़रिए भुगतान किया जाता है।


1. एम. सलीम भुगतान के लिए 20,000 रु. नकद निकालना चाहते हैं। इसके लिए वह बैंक कैसे लिखेंगे?

उत्तर: एम. सलीम बैंक से 20,000 रुपये निकालने के लिए चेक का उपयोग करेंगे। चेक में उन्हें अपनी बैंक शाखा का नाम, खाता संख्या, और राशि (20,000 रुपये) लिखनी होगी। साथ ही, चेक में अपना हस्ताक्षर भी करना होगा ताकि बैंक उस पर कार्रवाई कर सके और नकद राशि सलीम को दी जा सके।

उदाहरण के रूप में, चेक का रूप इस प्रकार हो सकता है:

  • Pay: "Cash" (यहां "Cash" लिखा जाएगा ताकि कोई भी व्यक्ति इसे नकद के रूप में प्राप्त कर सके)

  • Amount: ₹20,000

  • Date: जिस दिन चेक दिया जा रहा हो, वह तारीख

2. सही उत्तर पर निशान लगाएँ

सलीम और प्रेम के बीच लेन-देन के बाद:

(अ) सलीम के बैंक खाते में शेष बढ़ जाता है और प्रेम के बैंक खाते में शेष बढ़ जाता है।
(क) सलीम के बैंक खाते में शेष घट जाता है और प्रेम के बैंक खाते में शेष बढ़ जाता है।
(ग) सलीम के बैंक खाते में शेष बढ़ जाता है और प्रेम के बैंक खाते में शेष घट जाता है।

सही उत्तर:
(ख) सलीम के बैंक खाते में शेष घट जाता है और प्रेम के बैंक खाते में शेष बढ़ जाता है।

स्पष्टीकरण:
यह स्थिति तब होती है जब सलीम प्रेम को पैसे भेजते हैं। सलीम के खाते से पैसे निकलकर प्रेम के खाते में जमा हो जाते हैं। इसलिए, सलीम के खाते में शेष घटेगा और प्रेम के खाते में बढ़ेगा।


3. माँग जमा को मुद्रा क्यों समझा जाता है?

उत्तर: माँग जमा (Demand Deposits) को मुद्रा इसलिए समझा जाता है क्योंकि:

  • निकासी की सुविधा: माँग जमा में रखा गया धन कभी भी बैंकों से निकाला जा सकता है, यानी खाता धारक इसे अपनी आवश्यकता के अनुसार निकाल सकता है। इससे यह मुद्रा के रूप में काम करता है, क्योंकि इसका उपयोग किसी भी समय लेन-देन के लिए किया जा सकता है।

  • चेक के माध्यम से लेन-देन: माँग जमा के माध्यम से चेक द्वारा भुगतान किया जा सकता है, जो एक कानूनी माध्यम है किसी भी व्यापार या लेन-देन को पूरा करने के लिए। चेक की मदद से किसी भी वस्तु या सेवा के लिए भुगतान किया जा सकता है, जिससे यह मुद्रा की तरह कार्य करता है।

  • विनिमय का माध्यम: माँग जमा, सीधे नकद की तरह लेन-देन में इस्तेमाल होता है, और इसे कोई भी व्यक्ति स्वीकार करता है क्योंकि यह बैंक द्वारा सुरक्षित और वैध है।




1. निम्नलिखित तालिका की पूर्ति कीजिए।

सलीम

  • उन्हें ऋण की आवश्यकता क्यों पड़ी?
    सलीम को व्यापार शुरू करने और उसका विस्तार करने के लिए अर्थिक संसाधनों की आवश्यकता पड़ी। व्यापार में सामग्री, मशीनरी, और कर्मचारियों की वेतन जैसी खर्चे थे, जिन्हें पूरा करने के लिए सलीम ने ऋण लिया।

  • जोखिम क्या था?
    सलीम के लिए मुख्य जोखिम व्यापार में असफलता था, क्योंकि यदि व्यवसाय ने अच्छा मुनाफा नहीं कमाया, तो ऋण की अदायगी में समस्या आ सकती थी। इसके अलावा, व्यवसाय के लिए आवश्यक पूंजी की असुरक्षा और बाजार में प्रतिस्पर्धा भी जोखिम था।

  • परिणाम क्या हुए?
    यदि सलीम ने ऋण सही तरीके से और समय पर चुकाया, तो व्यापार में स्थिरता आई और उन्होंने अपनी स्थिति मजबूत की। यदि ऋण चुकाने में समस्या होती, तो यह उनके व्यवसाय को नुकसान पहुंचा सकता था और संभावित रूप से उनके व्यापार में बंदी का कारण बन सकता था।


2. मान लीजिए, सलीम को व्यापारियों से ऑर्डर मिलते रहते हैं। 6 साल बाद उसकी स्थिति क्या होगी?

उत्तर: अगर सलीम को व्यापारियों से लगातार ऑर्डर मिलते रहते हैं और वह सफलतापूर्वक अपना व्यवसाय चलाता है, तो 6 साल बाद उसकी स्थिति स्थिर और मजबूत हो सकती है। इस दौरान वह अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने, व्यापार का विस्तार करने और ऋण चुकाने में सक्षम होगा। उसकी बैंक बैलेंस में वृद्धि होगी और व्यवसाय में लाभ की संभावना बढ़ेगी। इसके अतिरिक्त, उसके पास एक स्थिर ग्राहक आधार और संचालन पूंजी होगी, जिससे वह भविष्य में और अधिक लाभ कमा सकेगा।


3. कौन से कारण हैं, जो स्वप्ना की स्थिति को जोखिम घरा बनाते हैं? निम्नलिखित कारकों को चर्चा कीजिए- कीटनाशक दवाइयों, साहूकारों की भूमिका, मौसम।

उत्तर: स्वप्ना की स्थिति को जोखिम घरा बनाने वाले कारण निम्नलिखित हैं:

  • कीटनाशक दवाइयों का जोखिम:
    कीटनाशक दवाइयों का अत्यधिक या गलत इस्तेमाल स्वास्थ्य और पर्यावरण पर नकरात्मक असर डाल सकता है। यदि कीटनाशक दवाइयाँ सही तरीके से नहीं प्रयोग की जातीं, तो यह फसल को नुकसान पहुँचा सकती हैं और उत्पादन में गिरावट हो सकती है, जिससे व्यापार को भी नुकसान होगा।
    जोखिम: गलत कीटनाशक या अत्यधिक उपयोग से फसल खराब होना और उच्च लागत का सामना करना।

  • साहूकारों की भूमिका:
    साहूकारों से लिए गए ऋणों की ब्याज दर बहुत अधिक हो सकती है, जिससे वित्तीय दबाव बढ़ता है। यदि स्वप्ना के पास पर्याप्त राशि नहीं है या वह ऋण की अदायगी में असफल होती है, तो यह एक वित्तीय संकट का कारण बन सकता है।
    जोखिम: साहूकारों द्वारा लिया गया ऋण भारी ब्याज दर पर हो सकता है, जिससे व्यापार का मुनाफा प्रभावित हो सकता है।

  • मौसम:
    स्वप्ना के कृषि व्यवसाय के लिए मौसम एक महत्वपूर्ण तत्व है। यदि मौसम खराब हो या प्राकृतिक आपदाएँ (जैसे बाढ़, सूखा) आ जाएं, तो यह उसकी फसल को प्रभावित कर सकता है और आय में कमी आ सकती है।
    जोखिम: अनुकूल मौसम न होने पर उत्पादन में कमी, फसल का नुकसान और आय का संकट।

इन सभी कारणों को ध्यान में रखते हुए स्वप्ना को अपनी योजना में विविधता और जोखिम प्रबंधन की रणनीतियाँ लागू करनी चाहिए, ताकि किसी भी संकट से उबरने में सक्षम हो सके।


1. उधारदाता उधार देते समय समर्थक ऋणाधार की माँग क्यों करता है?

उत्तर: उधारदाता उधार देते समय समर्थक ऋणाधार (collateral) की माँग करता है ताकि उसे ऋण की वापसी सुनिश्चित हो सके। जब ऋण लिया जाता है, तो उधारदाता को यह विश्वास चाहिए होता है कि यदि उधारकर्ता ऋण चुकता नहीं कर पाता, तो वह अपने संपत्ति के किसी रूप में इसे चुकता कर सकेगा। समर्थक ऋणाधार उधारदाता के लिए एक सुरक्षा का काम करता है और उसे यह सुनिश्चित करता है कि ऋण वापसी की संभावना बनी रहे, खासकर यदि उधारकर्ता की स्थिति कमजोर हो।


2. हमारे देश की एक बहुत बड़ी आबादी निर्धन है। क्या यह उनके कर्ज लेने की क्षमता को प्रभावित करती है?

उत्तर: जी हाँ, हमारे देश में बड़ी संख्या में निर्धन लोग हैं, और यह उनकी कर्ज लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। निर्धन लोगों के पास संपत्ति और आवश्यक सुरक्षा (collateral) नहीं होती, जिससे वे कर्ज लेने में सक्षम नहीं होते। इसके अलावा, निर्धन लोगों को उच्च ब्याज दरों का सामना करना पड़ता है, और उनके पास पर्याप्त आय या संसाधन नहीं होते ताकि वे ऋण की अदायगी कर सकें। इन कारणों से, निर्धन वर्ग के लिए कर्ज प्राप्त करना कठिन हो जाता है और उनके लिए ऋण चुकाना भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है।


3. कोष्ठक में दिए गए सही विकल्पों का चयन कर रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।

उत्तर: ऋण लेते समय कर्जदार आसान ऋण शर्तों को देखता है। इसका अर्थ है दर (आसान), अदायगी को शर्तें (आसान), आवश्यक कागजात (निम्न), ब्याज (कम), समर्थक ऋणाधार एवं (निम्न)।

1. सोनपुर में ऋण के विभिन्न स्रोतों की सूची बनाइए।

उत्तर: सोनपुर में ऋण के विभिन्न स्रोत निम्नलिखित हो सकते हैं:

  1. साहूकार (Moneylenders) - यह ऋणदाता आमतौर पर उच्च ब्याज दर पर ऋण प्रदान करते हैं।

  2. बैंक - सरकारी और निजी बैंक, जो अपेक्षाकृत कम ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करते हैं, लेकिन इनसे ऋण लेने के लिए समर्थक ऋणाधार (collateral) की आवश्यकता होती है।

  3. वित्तीय संस्थाएँ - माइक्रोफाइनेंस संस्थाएँ और ग्रामीण विकास बैंक जो छोटे किसानों को ऋण प्रदान करती हैं।

  4. सरकारी योजनाएँ - जैसे प्रधानमंत्री रोजगार योजना, किसान क्रेडिट कार्ड योजना, आदि।

  5. सामूहिक बचत योजनाएँ - जैसे स्व-सहायता समूह (SHG) जो महिलाओं और गरीबों को कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करती हैं।

  6. अनौपचारिक स्रोत - रिश्तेदार और दोस्तों से कर्ज लेना।


2. ऊपर दिए हुए अनुच्छेदों में ऋण के विभिन्न प्रयोगों वाली पक्तियों को रेखांकित कीजिए।

उत्तर: ऋण के विभिन्न प्रयोगों को रेखांकित करने के लिए, यह अनुच्छेदों में हम देख सकते हैं कि:

  • किसान के लिए ऋण का उपयोग मुख्य रूप से खेतों की खेती के लिए या कृषि उपकरण खरीदने के लिए किया जाता है।

  • व्यापारियों और छोटे व्यापारियों के लिए ऋण का उपयोग उनके व्यापार के विस्तार के लिए किया जाता है।

  • सामाजिक सुरक्षा या व्यक्तिगत आवश्यकताओं के लिए भी कुछ लोग ऋण लेते हैं, जैसे स्वास्थ्य देखभाल या अन्य व्यक्तिगत जरूरतें।


3. सोनपुर के छोटे किसान, मध्यम किसान और भूमिहीन कृषि मजदूर के लिए ऋण की शर्तों की तुलना कीजिए।

उत्तर: सोनपुर के छोटे किसान, मध्यम किसान और भूमिहीन कृषि मजदूर के लिए ऋण की शर्तों में निम्नलिखित अंतर हो सकते हैं:

  • छोटे किसान: छोटे किसानों को ऋण मिलने में कठिनाई होती है क्योंकि उनके पास पर्याप्त समर्थक ऋणाधार (collateral) नहीं होता। उन्हें साहूकारों से उच्च ब्याज दर पर ऋण मिल सकता है, या फिर सरकारी योजनाओं से रियायती दरों पर ऋण प्राप्त हो सकता है।

  • मध्यम किसान: मध्यम किसानों के पास कुछ संपत्ति होती है, इसलिए वे बैंक से कम ब्याज दरों पर ऋण प्राप्त कर सकते हैं। उन्हें स्वतंत्र रूप से ऋण शर्तों को बातचीत के जरिए प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।

  • भूमिहीन कृषि मजदूर: भूमिहीन मजदूरों को ऋण प्राप्त करना अधिक कठिन होता है, क्योंकि उनके पास समर्थक ऋणाधार नहीं होता। वे अधिकतर साहूकारों से ऋण लेते हैं, जो उन्हें उच्च ब्याज दरों पर ऋण देते हैं।


4. श्यामल की तुलना में अरुण को सखेती से ज्यादा आय क्यों होगी?

उत्तर: अरुण को सखेती से ज्यादा आय हो सकती है क्योंकि अरुण के पास ज्यादा संसाधन, भूमि या पूंजी हो सकती है, जिससे वह उच्च गुणवत्ता वाले बीज, कीटनाशक और सिंचाई जैसे आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग कर सकता है। इसके अलावा, अगर अरुण को कम ब्याज दर पर ऋण मिलता है, तो वह अपनी खेती को बेहतर बना सकता है और अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकता है। श्यामल के पास शायद यह संसाधन नहीं हो, या वह कम गुणवत्ता वाली खेती कर रहा हो।


5. क्या सोनपुर के सभी लोगों को सस्ती व्याज दरों पर कर्ज मिल सकता है? किन लोगों को मिल सकता है?

उत्तर: सोनपुर के सभी लोगों को सस्ती ब्याज दरों पर कर्ज मिलना संभव नहीं है। ब्याज दरें कम उन्हीं लोगों को मिल सकती हैं जिनके पास समर्थक ऋणाधार है और जो बैंक से ऋण लेने के योग्य होते हैं, जैसे बड़े किसान या व्यापारी। वहीं, छोटे किसान और भूमिहीन मजदूरों को साहूकारों से उच्च ब्याज दरों पर ऋण लेना पड़ता है, क्योंकि उनके पास संपत्ति या ऋण के लिए समर्थक नहीं होता।


6. सही उत्तर पर निशान लगाइए

(क) समय के साथ, रमा का ऋण
घट जाएगा ✔️
(समान रहेंगा/बढ़ जाएगा) गलत

(ख) अरुण सोनपुर के उन लोगों में से है जो बैंक से उधार लेते हैं क्योंकि
बैंक समर्थक ऋणाधार की माँग करते हैं जो कि हर किसी के पास नहीं होती ✔️
(गाँव के अन्य लोग साहूकारों से कर्ज लेना चाहते हैं) गलत
(बैंक ऋण पर ब्याज दरें उतनी ही हैं जितना कि व्यापारी लेते हैं) गलत


7. कुछ लोगों से बातचीत कीजिए, जिनसे आपको अपने क्षेत्र में ऋण प्रबंधों के बारे में कोई जानकारी मिले। अपनी बातचीत को रिकॉर्ड कीजिए। विभिन्न लोगों में ऋण की शर्तों में विभिन्नता को लिखिए।

उत्तर: आप अपने क्षेत्र में किसानों, व्यापारियों और शहरी लोगों से बातचीत कर सकते हैं। बातचीत के दौरान आप देख सकते हैं कि किसानों को उच्च ब्याज दरों पर ऋण मिलता है जबकि व्यापारियों को कम ब्याज दरों पर ऋण मिल सकता है। इसके अलावा, शहरी लोग और बड़े व्यापारी जो बैंक में खाते रखते हैं, उन्हें कम ब्याज दर पर ऋण मिल सकता है, लेकिन छोटे किसान या भूमिहीन मजदूर को अधिक कठिनाइयाँ होती हैं।


1. ऋण के औपचारिक और अनौपचारिक स्रोतों में क्या अन्तर है?

उत्तर: ऋण के औपचारिक और अनौपचारिक स्रोतों में निम्नलिखित अंतर होते हैं:

  • औपचारिक स्रोत:

    1. ये सरकारी और निजी बैंक होते हैं जो कानूनी और नियंत्रित होते हैं।

    2. इनसे मिलने वाले ऋण पर समान ब्याज दरें होती हैं जो नियंत्रित होती हैं।

    3. ऋण शर्तें स्पष्ट और स्पष्ट रूप से तय की जाती हैं।

    4. इन्हें समर्थक ऋणाधार (collateral) या अन्य कागजात के माध्यम से प्रमाणित किया जाता है।

  • अनौपचारिक स्रोत:

    1. ये साहूकार, रिश्तेदार या दोस्त हो सकते हैं, जो बिना किसी औपचारिक समझौते के ऋण देते हैं।

    2. इनसे मिलने वाले ऋण पर अधिक ब्याज दरें हो सकती हैं और शर्तें स्पष्ट नहीं होती हैं।

    3. आमतौर पर समर्थक ऋणाधार की आवश्यकता नहीं होती।

    4. अनौपचारिक ऋण स्रोतों के पास नियंत्रण और नियम नहीं होते, इसलिए यह जोखिमपूर्ण होते हैं।


2. सभी लोगों के लिए यथोचित दरों पर ऋण क्यों उपलब्ध होना चाहिए?

उत्तर: सभी लोगों के लिए यथोचित दरों पर ऋण उपलब्ध होना चाहिए, क्योंकि:

  1. आर्थिक समानता: यदि ऋण पर उच्च ब्याज दरें होती हैं, तो गरीब और छोटे व्यवसायी ऋण लेने में सक्षम नहीं होते, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और बिगड़ सकती है। यथोचित दरों पर ऋण उपलब्ध होने से समान अवसर मिलते हैं।

  2. विकास में सहायता: छोटे किसान और व्यापारी जो उधार लेकर अपना व्यापार बढ़ाना चाहते हैं, वे यथोचित दरों पर ऋण प्राप्त कर सकते हैं और आर्थिक रूप से प्रगति कर सकते हैं।

  3. ब्याज भार में कमी: उच्च ब्याज दरों से ऋण का बोझ बढ़ जाता है, जिससे ऋण चुकाने में कठिनाई होती है। यथोचित दरों पर ऋण मिलने से ऋण चुकाने में आसानी होती है।

  4. विकसित और समृद्ध समाज: जब सभी वर्गों को न्यायपूर्ण ऋण मिलते हैं, तो देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और विकास की दिशा में योगदान मिलता है।


3. क्या भारतीय रिजर्व बैंक के जैसा कोई निरीक्षक होना चाहिए जो अनौपचारिक ऋणदाताओं की गतिविधियों पर नजर रखे? उसका काम मुश्किल क्यों होगा?

उत्तर: हां, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के जैसा एक नियामक संस्था होना चाहिए जो अनौपचारिक ऋणदाताओं की गतिविधियों पर निगरानी रखे। हालांकि, इसका कार्य कठिन होगा, इसके निम्नलिखित कारण हैं:

  1. अनौपचारिक ऋणदाता बहुत व्यापक होते हैं: अनौपचारिक ऋणदाताओं में साहूकार, रिश्तेदार और दोस्त होते हैं, जो बहुत छोटे स्तर पर काम करते हैं। इनकी गतिविधियों को ट्रैक करना मुश्किल होता है।

  2. गैर-पंजीकृत और अव्यवस्थित कार्य: इन ऋणदाताओं का कोई औपचारिक पंजीकरण या रिकॉर्ड नहीं होता है, जिससे उनकी निगरानी करना और नियंत्रण करना मुश्किल हो जाता है।

  3. कानूनी और सामाजिक चुनौती: कई बार गांवों और दूरदराज इलाकों में साहूकारों के ऋणदाताओं की गतिविधियाँ सामाजिक रूप से स्वीकृत होती हैं, और उन पर नजर रखना कानूनी और सामाजिक दृष्टि से मुश्किल हो सकता है।

  4. कम जागरूकता: बहुत से गरीब और छोटे किसान ऋणदाताओं के बारे में जानकारी नहीं रखते हैं, और इसलिए नियंत्रण रखना कठिन हो जाता है।


4. आपकी समझ में गरीब परिवारों की तुलना में अमीर परिवारों के औपचारिक ऋणों का हिस्सा अधिक क्यों होता है?

उत्तर: अमीर परिवारों की तुलना में गरीब परिवारों के औपचारिक ऋणों का हिस्सा अधिक होने के कारण निम्नलिखित हैं:

  1. संपत्ति और समर्थक ऋणाधार: अमीर परिवारों के पास संपत्ति और आर्थिक संसाधन होते हैं, जिससे उन्हें सस्ती ब्याज दरों पर ऋण मिल सकता है। गरीब परिवारों के पास समर्थक ऋणाधार का अभाव होता है, इसलिए वे अक्सर अनौपचारिक स्रोतों से ऋण लेते हैं।

  2. ऋण लेने की पात्रता: अमीर परिवारों के पास स्थिर आय और आर्थिक सुरक्षा होती है, जिससे वे औपचारिक ऋण संस्थाओं से ऋण लेने में सक्षम होते हैं। गरीब परिवारों के पास यह सुविधा नहीं होती और वे साहूकारों से अधिक ब्याज पर ऋण लेते हैं।

  3. कर्ज चुकाने की क्षमता: अमीर परिवारों के पास ऋण चुकाने की क्षमता अधिक होती है, इसलिए उन्हें औपचारिक ऋण प्राप्त करने में कोई समस्या नहीं होती। जबकि गरीब परिवारों के पास ऐसी आर्थिक सुरक्षा नहीं होती, जिससे वे औपचारिक ऋणों का हिस्सा ले सकें।

यहां आपके द्वारा पूछे गए अभ्यास सवालों के उत्तर दिए गए हैं:


1. जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए और संस्थाएँ खड़ी कर सकती हैं। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: जब कर्जदार जोखिम वाली परिस्थितियों में होते हैं, तो ऋण लेने में उनके सामने कई समस्याएँ हो सकती हैं। उदाहरण के तौर पर, प्राकृतिक आपदाएँ, फसल की बर्बादी, या व्यापारिक घाटे की स्थिति में कर्जदार के लिए ऋण चुकाना कठिन हो सकता है। ऐसे में संस्थाएँ विभिन्न सहायक उपाय कर सकती हैं:

  1. बीमा योजना: कर्जदार को कृषि बीमा या स्वास्थ्य बीमा जैसे कार्यक्रमों से वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना, जिससे किसी भी प्राकृतिक या आर्थिक आपदा में उन्हें मदद मिल सके।

  2. कर्ज पुनर्गठन: यदि कर्जदार आर्थिक संकट में हैं तो ऋण पुनर्गठन के द्वारा उनकी कर्ज अदायगी की शर्तों को राहत दी जा सकती है।

  3. सस्ती ब्याज दरें: ऐसे समय में सस्ती ब्याज दरों पर ऋण देना कर्जदार के लिए मददगार हो सकता है।

  4. मूल्य समर्थन: सरकार कृषि उत्पादों के मूल्य को समर्थन प्रदान करके कर्जदार को राहत दे सकती है।


2. मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को किस तरह सुलझाती है? अपनी ओर से उदाहरण देकर समझाइए।

उत्तर:
मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग (Double Coincidence of Wants) की समस्या को सुलझाती है क्योंकि जब हम वस्तु विनिमय (Barter System) के बारे में बात करते हैं, तो यह जरूरी होता है कि एक व्यक्ति जिसे एक वस्तु चाहिए हो, वही व्यक्ति दूसरी वस्तु भी चाहता हो, लेकिन यह दुर्लभ होता है। मुद्रा इस समस्या का समाधान करती है क्योंकि यह सभी के लिए मान्यता प्राप्त होती है और इसे किसी भी वस्तु या सेवा के बदले आसानी से विनिमय किया जा सकता है।

उदाहरण:
कल्पना कीजिए एक किसान है जिसके पास गेहूँ है और उसे जूते खरीदने हैं। यदि वह वस्तु विनिमय करता है तो उसे एक ऐसे जूता निर्माता की आवश्यकता होगी जो गेहूँ की कीमत पर जूते देने को तैयार हो। लेकिन मुद्रा की सहायता से, किसान अपने गेहूँ को बेच सकता है और फिर उस पैसे का इस्तेमाल जूते खरीदने में कर सकता है, बिना यह सोचे कि उसे यह वस्तु किससे मिल सकती है।


3. अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमंद लोगों के बीच बैंक किस तरह मध्यस्थता करते हैं?

उत्तर: बैंक अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों (जो बचत करते हैं) और जरूरतमंद लोगों (जो ऋण लेते हैं) के बीच मध्यस्थता करते हैं।

  1. बचत को एकत्र करना: बैंक, जो अतिरिक्त मुद्रा वाले व्यक्तियों से बचत स्वीकार करते हैं, उसे संग्रहीत करते हैं और इसे ब्याज के रूप में देते हैं।

  2. ऋण वितरण: बैंक इस बचत को उन लोगों को उधार देती है जिन्हें ऋण की आवश्यकता होती है, जैसे छोटे व्यापारी, किसान या विद्यार्थी।

  3. ब्याज दर में अंतर: बैंक उधार देने पर ब्याज वसूल करती है, जो कि उस व्यक्ति को बचत पर मिल रहे ब्याज से अधिक होता है। इस प्रकार, बैंक दोनों के बीच संतुलन बनाए रखता है और सामाजिक और आर्थिक विकास में योगदान करता है।


4. 10 रुपये के नोट को देखिए। इसके ऊपर क्या लिखा है? क्या आप इस कथन की व्याख्या कर सकते हैं?

उत्तर: 10 रुपये के नोट पर लिखा होता है:
"I promise to pay the bearer the sum of ten rupees" और "Reserve Bank of India"।

इसका मतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) सरकार की तरफ से यह वादा करता है कि यह 10 रुपये का नोट 10 रुपये की मूल्य की मुद्रा के रूप में स्वीकार किया जाएगा। इसे किसी भी व्यक्ति या व्यापारी के द्वारा भुगतान के रूप में कानूनी रूप से स्वीकार किया जाएगा। यह एक गैर-समर्थक मुद्रा है, जिसका उपयोग कानूनी लेन-देन में किया जा सकता है।


5. हमें भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की क्यों जरूरत है?

उत्तर: भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की आवश्यकता है क्योंकि:

  1. ऋण की उपलब्धता: औपचारिक स्रोतों से मिलने वाले ऋण पर नियंत्रण और समान ब्याज दरें होती हैं, जो साहूकारों के उच्च ब्याज दरों की तुलना में बेहतर होती हैं।

  2. ऋण चुकाने की क्षमता: औपचारिक ऋण अधिक सुविधाजनक होते हैं और इन्हें नियंत्रित और सुरक्षित तरीके से चुकाया जा सकता है।

  3. आर्थिक विकास: औपचारिक ऋण अधिक व्यावसायिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देते हैं, जिससे देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।

  4. गरीबी उन्मूलन: औपचारिक ऋण की उपलब्धता से गरीब वर्ग को भी वित्तीय सहायता मिल सकती है और वे अपना व्यापार या कृषि कार्य बढ़ा सकते हैं।


6. गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूहों के संगठनों के पीछे मूल विचार क्या है?

उत्तर: स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups) का मूल विचार गरीबों और हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए सामूहिक समर्थन और वित्तीय सहायता प्रदान करना है।

  1. ये समूह एक साथ मिलकर धन इकट्ठा करते हैं और आपस में ऋण देते हैं, जिससे उन्हें सस्ती ब्याज दरों पर ऋण मिलता है।

  2. इन समूहों के माध्यम से गरीब लोग अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्वावलंबी बन सकते हैं।

  3. यह सामाजिक और आर्थिक सहायता प्रदान करता है, जिससे गरीबों को स्वयं अपने व्यवसाय या परियोजनाओं में निवेश करने का अवसर मिलता है।


7. क्या कारण हैं कि बैंक कुछ कर्जदारों को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं होते?

उत्तर: बैंक कुछ कर्जदारों को ऋण देने के लिए तैयार नहीं होते क्योंकि:

  1. ऋण चुकाने की क्षमता नहीं: यदि कर्जदार की आय स्थिर नहीं है या उसे ऋण चुकाने की क्षमता नहीं दिखती, तो बैंक उसे ऋण देने से हिचकिचाते हैं।

  2. समर्थक ऋणाधार की कमी: अगर कर्जदार के पास समर्थक ऋणाधार (जैसे संपत्ति) नहीं है, तो बैंक जोखिम लेने से डरते हैं।

  3. ऋण इतिहास का खराब होना: कर्जदार का ऋण चुकाने का रिकॉर्ड खराब होने पर बैंक को चिंता हो सकती है कि वह फिर से समय पर ऋण नहीं चुकाएगा।

  4. कानूनी जोखिम: अगर कर्जदार के खिलाफ कोई कानूनी मामला चल रहा हो या वह आर्थिक रूप से अस्थिर हो, तो बैंक उसे ऋण देने से बचते हैं।


8. भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर किस तरह नजर रखता है? यह जरूरी क्यों है?

उत्तर: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) अन्य बैंकों की गतिविधियों पर निगरानी रखता है ताकि बैंकिंग प्रणाली की स्थिरता बनी रहे और वित्तीय जोखिम से बचा जा सके। RBI बैंकों की गतिविधियों का पालन करने के लिए कई नियम और दिशा-निर्देश निर्धारित करता है। इसके अंतर्गत:

  1. नियमों की अनुपालना: RBI यह सुनिश्चित करता है कि बैंक विनियमन और दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे हैं। यह सुनिश्चित करता है कि बैंकिंग संस्थाएँ समान और उचित तरीके से काम करें।

  2. वित्तीय स्थिरता: बैंकों की वित्तीय स्थिति और देनदारी की जांच की जाती है ताकि वे आर्थिक संकटों से न जूझें।

  3. ऋण वितरण: RBI यह भी देखता है कि बैंक ऋण वितरण की प्रक्रिया में समानता और पारदर्शिता बनाए रखें।

यह क्यों जरूरी है?
RBI का यह कार्य इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि:

  • बैंकिंग प्रणाली में पारदर्शिता बनी रहे।

  • बैंकों के संचालन में जोखिम कम हो और आर्थिक संकटों से बचा जा सके।

  • नागरिकों का विश्वास बना रहे कि उनके धन की सुरक्षा है।


9. विकास में ऋण की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर:
ऋण का विकास में महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि:

  1. वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराना: ऋण से व्यक्तियों और संस्थाओं को वित्तीय संसाधन मिलते हैं, जिससे वे व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य, और मूलभूत सुविधाओं में निवेश कर सकते हैं।

  2. अर्थव्यवस्था में गति लाना: ऋण से निवेश बढ़ता है, जिससे व्यवसायों की वृद्धि होती है और इससे रोजगार के अवसर पैदा होते हैं।

  3. मूलभूत सुविधाएँ और बुनियादी ढांचा: सरकार और निजी कंपनियाँ ऋण लेकर सड़कें, पानी की आपूर्ति, संसाधन प्रबंधन जैसी बुनियादी सुविधाओं का निर्माण करती हैं, जो विकास के लिए आवश्यक हैं।

  4. नवाचार और अनुसंधान: ऋण से नवाचार में निवेश किया जा सकता है, जिससे नई तकनीकें और व्यवसाय सामने आते हैं, जो आर्थिक विकास में सहायक होते हैं।


10. मानव को एक छोटा व्यवसाय करने के लिये ऋण की जरूरत है। मानव किस आधार पर यह निश्चित करेगा कि उसे यह ऋण बैंक से लेना चाहिए या साहूकार से? चर्चा कीजिए।

उत्तर:
मानव यह निर्णय लेते समय कुछ मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देगा:

  1. ब्याज दर: बैंक आमतौर पर साहूकारों से कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करते हैं, जिससे मानव के लिए कम भुगतान करना पड़ता है।

  2. वापसी की शर्तें: बैंक के ऋण की वापसी शर्तें अधिक व्यवस्थित और पारदर्शी होती हैं, जबकि साहूकारों की शर्तें कड़ी और कठिन हो सकती हैं।

  3. ऋण की अवधि: बैंक से ऋण की अधिक अवधि मिल सकती है, जबकि साहूकारों से यह ऋण त्वरित होता है और यह अक्सर संक्षिप्त समय के लिए होता है।

  4. विश्वसनीयता और कानूनी सुरक्षा: बैंक से लिया गया ऋण कानूनी रूप से सुरक्षित होता है, जबकि साहूकारों के साथ लेन-देन में अक्सर कानूनी समस्याएँ हो सकती हैं।

इसलिए, यदि मानव के पास बैंक का विकल्प है, तो उसे बैंक से ऋण लेना अधिक सुरक्षित और सस्ता रहेगा।


11. भारत में 80 प्रतिशत किसान छोटे किसान हैं, जिन्हें खेती करने के लिए ऋण की जरूरत होती है।

(क) बैंक छोटे किसानों को ऋण देने से क्यों हिचकिचा सकते हैं?

उत्तर: 1. संपत्ति का अभाव: छोटे किसानों के पास संपत्ति या गारंटी का अभाव होता है, जो बैंकों के लिए ऋण चुकाने की सुरक्षा हो।

2. ऋण चुकाने की असमर्थता: छोटे किसान अपनी आय में स्थिरता नहीं दिखा पाते हैं, जिससे बैंक को लगता है कि वे ऋण चुकता नहीं कर पाएंगे।

(ख) वे दूसरे स्रोत कौन हैं, जिनसे छोटे किसान कर्ज ले सकते हैं?

उत्तर: साहूकार: छोटे किसान अक्सर साहूकारों से उधार लेते हैं, जो अधिक ब्याज दर पर ऋण प्रदान करते हैं।

कृषि सहकारी समितियाँ: किसान कृषि सहकारी समितियों से भी ऋण प्राप्त कर सकते हैं, जो अधिक सस्ती ब्याज दर पर कर्ज देते हैं।

(ग) उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए कि किस तरह ऋण की शर्तें छोटे किसानों के प्रतिकूल हो सकती हैं।

उत्तर:

  • उदाहरण: अगर एक छोटा किसान किसी साहूकार से ऋण लेता है, तो उसे उच्च ब्याज दर पर ऋण मिलता है, जो उसकी आय की तुलना में बहुत ज्यादा हो सकता है। इसके कारण ऋण चुकाने में दिक्कत हो सकती है और कर्जदार का आर्थिक बोझ बढ़ सकता है।

(घ) सुझाव दीजिए कि किस तरह छोटे किसानों को सस्ता ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है।

उत्तर:

  • सरकारी योजनाएँ: सरकार को कृषि ऋण योजनाओं के माध्यम से सस्ती ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना चाहिए।

  • सहकारी बैंकों का विस्तार: छोटे किसानों को सहकारी बैंकों के माध्यम से सस्ती ब्याज दरों पर ऋण मिल सकता है।

  • मूलभूत गारंटी की सुरक्षा: छोटे किसानों को सरकारी गारंटी देने की योजना बनाकर उनकी ऋण चुकाने की क्षमता को सुनिश्चित किया जा सकता है।


12. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(क) परिवारों की ऋण की अधिकांश जरूरतें अनौपचारिक स्रोतों से पूरी होती हैं।
(ख) ऋण की लागत ऋण का बोझ बढ़ाती है।
(ग) केन्द्रीय सरकार की ओर से करेंसी नोट जारी करता है।
(घ) बैंक पर देने वाले ब्याज से ऋण पर अधिक व्याज लेते हैं।
(त) सम्पत्ति है जिसका मालिक कर्जदार होता है जिसे वह ऋण लेने के लिए गारंटी के रूप में इस्तेमाल करता है, जब तक ऋण चुकता नहीं हो जाता।


13. सही उत्तर का चयन करें

(क) स्वयं सहायता समूह में बचत और ऋण संबंधित अधिकतर निर्णय सदस्यों द्वारा लिए जाते हैं।
(ख) ऋण के औपचारिक स्रोतों में शामिल: बैंक।


तालिका

आपने जिन शहरी क्षेत्रों के व्यवसायों का उल्लेख किया है, उनके लिए ऋण के कारण और उपलब्धता पर आधारित उत्तरों की सूची इस प्रकार हो सकती है:

व्यवसाय ऋण लेने का कारण
निर्माण मजदूर घर बनवाने के लिए या रोजगार के लिए ऋण।
कंप्यूटर शिक्षित स्नातक छात्र शिक्षा के लिए ऋण।
सरकारी सेवा में नियोजित व्यक्ति व्यक्तिगत आवश्यकताओं या घर के लिए ऋण।
दिल्ली में प्रवासी मजदूर घर बनाने या परिवार के लिए ऋण।
घरेलू नौकरानी परिवार की जरूरतों के लिए ऋण।
छोटा व्यापारी व्यापार की वृद्धि के लिए ऋण।
ऑटो रिक्सा चालक वाहन खरीदने के लिए ऋण।
बंद फैक्ट्री का मजदुर पुनः रोजगार के लिए ऋण।

                                                                                                                THANK YOU 

                                                                                                                 AUTHOR-RUMI DEKA.