1. निम्नलिखित प्रश्नों के शुद्ध उत्तरों का चयन करो।
(क) कबीरदास के अनुसार साधु के बारे में कौन-सी बात नहीं पूछी जानी याहिए ? [HSLC'11]
(अ) सम्पत्ति
(आ) घर-परिवार
(इ) उम्र
(ई) जाति
उत्तरः (ई) जाति
(ख) कबीरदास के अनुसार प्रकृत पण्डित कौन है ? [HSLC '12,'19]
(अ) जो एम.ए. पास करता है
(आ) जो ढाई अक्षर प्रेम-पाठ पढ़ता है
(इ) जो अत्यधिक पुस्तकें पढ़ता है
(ई) इनमें से एक भी नहीं है।.
उत्तरः (आ) जो ढाई अक्षर प्रेम-पाठ पढ़ता है
2. कबीरदास के अनुसार गुरु कया है ? [HSLC '13]
(अ)सोनार
(आ) कुम्हार
(इ) कहार
(ई) लोहार
उत्तरः (आ) कुम्हार
3. कबीरदास के अनुसार प्रेमविहीन शरीर किसके समान होता। है? [HSLC'14]
(अ) मिट्टी के समान
(आ) राख के समान
(इ) मसान के समान
(ई) घास के समान
उत्तरः (इ) मसान के समान
4. कस्तूरी मृग वन-वन में क्या खोजता फिरता है ? [HSLC'15]
(अ) कोमल घास
(आ) शीतल जल
(इ) निर्मल हवा
(ई) कस्तूरी नामक सुगन्धित पदार्थ
उत्तरः (ई) कस्तूरी नामक सुगन्धित पदार्थ
5. सन्त कबीरदास के अनुसार हमें कल का काम कब करना चाहिए ? [HSLC'16]
उत्तरः सन्त कबीरदास के अनुसार हमें कल का काम आज करना चाहिए।
6. महात्मा कबीकदास के अनुसार साधु की कौन-सी बात नहीं पुछी जानी चाहिये ? [HSLC'16]
उत्तरः महात्मा कबीरदास के अनुसार साधु की जाति नहीं पुछी जानी चाहिए।
7.कबीरदास के अनुसार साधु की पहचान क्या है ? [HSLC'17]
उत्तरः कबीरदास के अनुसार साधु की पहचान ज्ञान हैं।
8.'साखी' शब्द किस मूल शब्द से विकसित है ? [HSLC'17,'20]
उत्तरः साक्षी।
9. कबीरदास ने किस भाषा मे कविता लिखी थी ? [HSLC'19]
उत्तरः हिंदुस्तानी (सधुक्कड़ी)
10. कबीर के अनुसार गुरु कुम्हार है तो शिष्य क्या है ? [HSLC'20]
उत्तरः कुंभ (घड़ा)
B. विवरणात्मक प्रश्न :
1. सप्रसंग व्याख्या करो :
(i) माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर। कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।
[HSLC'11]
उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे किताब में स्थित साखी पाठ से लिया गया हैं।
व्याख्या- इस साखी में कबीरदास जी यह बताते हैं कि केवल माला (जप) फेरने से कुछ नहीं होता, अगर मन का फेर नहीं होता तो यह प्रयास निरर्थक है। माला केवल एक बाह्य क्रिया है, जबकि सच्ची भक्ति और ध्यान मन के भीतर से आना चाहिए। कबीर जी हमें प्रेरित करते हैं कि हमें अपने मन को नियंत्रित करना चाहिए और अपने आंतरिक भावनाओं और चिंताओं पर ध्यान देना चाहिए। असल में, जब मन का ध्यान परमात्मा की ओर लगेगा, तभी सच्ची साधना होगी।
(ii) जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ। जो बौरा डूबन डरा, रहा किनारे बैठ । [HSLC'11]
उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे किताब में स्थित साखी पाठ से लिया गया हैं।
व्याख्या- इस पंक्ति का अर्थ है कि जो लोग गहरे पानी में (साधना और खोज में) उतरते हैं, वे ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। "गहरे पानी पैठ" का अर्थ है कि सच्चा ज्ञान और आत्मा की पहचान केवल गहरी साधना और प्रयास से ही संभव है। दूसरी ओर, "जो बौरा डूबन डरा, रहा किनारे बैठ" यह दर्शाता है कि जो लोग भय या संकोच के कारण साधना में आगे नहीं बढ़ते, वे केवल किनारे पर रहते हैं और सच्चाई को नहीं पा सकते। यह साखी हमें साहस और खोज की प्रेरणा देती है।
(iii) बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझ-सा बुरा न कोय ।।[HSLC '12,'18]
उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे किताब में स्थित साखी पाठ से लिया गया हैं।
व्याख्या- इस साखी में कबीरदास जी आत्म-निरीक्षण के महत्व को उजागर करते हैं। जब वे बुराई की खोज में निकले, तो उन्हें कोई बुरा नहीं मिला। इसका तात्पर्य यह है कि जब हम दूसरों में बुराई ढूंढते हैं, तो हमें अपनी अपनी कमजोरियों का सामना करने का मौका नहीं मिलता। कबीर जी का कहना है कि जब हम अपने अंदर झाँकते हैं और अपनी बुराइयों को खोजते हैं, तो हमें अपनी ही तुलना में कोई भी बुरा नहीं लगता। यह साखी हमें आत्म-निरीक्षण और सुधार की आवश्यकता का संदेश देती है।
(iv) जा घट प्रेम न संचरै, सो घट जान मसान । जैसे खाल लोहार की, साँस लेत बिनु प्रान ।।[HSLC '12,' 15,'19]
उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे किताब में स्थित साखी पाठ से लिया गया हैं।
व्याख्या-इस साखी में कबीरदास जी यह स्पष्ट करते हैं कि जहां प्रेम नहीं है, वह स्थान मसान (शमशान) के समान है। जैसे लोहार की खाल में जीवन नहीं होता, वैसे ही बिना प्रेम के जीवन का कोई अर्थ नहीं है। प्रेम को आत्मा का प्राण माना गया है, और कबीर जी हमें बताते हैं कि प्रेम की अनुपस्थिति में हमारा जीवन निर्जीव और खाली होता है। इस साखी का संदेश है कि सच्चा जीवन प्रेम में ही निहित है।
(v) तेरा साई तुज्झ में, ज्यों पुहपन में बास। कस्तूरो का मिरग ज्यों, फिर-फिर दूँदै घास ।।[HSLC'13, '17,'20]
उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे किताब में स्थित साखी पाठ से लिया गया हैं।
व्याख्या- इस साखी में कबीरदास जी यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि हमारा सच्चा स्वामी (साई) हमारे भीतर ही है, जैसे पुष्प (फूल) में उसकी सुगंध होती है। जैसे कस्तूरी का मृग अपनी सुगंध को बाहर ढूंढता है, जबकि वह उसके अपने भीतर ही है। कबीर जी हमें प्रेरित करते हैं कि हमें अपने भीतर के दिव्य तत्व को पहचानना चाहिए और बाहर की तलाश में नहीं रहना चाहिए।
(vi) संत गुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपगार। लोचन अनंत उघाड़िया, अनँत दिखावणहार ।।[HSLC'14,18]
उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे किताब में स्थित साखी पाठ से लिया गया हैं।
व्याख्या- इस साखी में कबीर जी संत और गुरु की महिमा का बखान करते हैं। गुरु के उपकार अनंत होते हैं, जो हमें आत्मज्ञान की ओर ले जाते हैं। "लोचन अनंत उघाड़िया" का अर्थ है कि गुरु ने हमें अनंत दृष्टि दी है, जिससे हम सच्चाई और दिव्यता को देख सकते हैं। यह साखी हमें बताती है कि गुरु का ज्ञान हमारे जीवन में अनमोल है और हमें उसका सम्मान करना चाहिए।
(vii) जिन दूँढ़ा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ। जो बौरा डूबन डरा, रहा किनारे बैठ । [HSLC'14]
उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे किताब में स्थित साखी पाठ से लिया गया हैं।
व्याख्या- इस साखी का पहले ही उल्लेख हो चुका है, और इसका अर्थ यह है कि गहरे पानी में उतरने वाले ही सच्चे ज्ञान को प्राप्त करते हैं। जो लोग डरकर किनारे पर रहते हैं, वे कभी सच्चाई को नहीं पा सकते। कबीर जी हमें साहस और खोज की प्रेरणा देते हैं।
(viii) काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में परलय होएगा, बहुरि करेगो कब ।।[HSLC'17]
उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे किताब में स्थित साखी पाठ से लिया गया हैं।
व्याख्या- इस साखी में कबीर जी यह बताते हैं कि हमें कार्यों को टालना नहीं चाहिए। जो कार्य हमें करना है, उसे आज ही करना चाहिए, क्योंकि समय का कोई भरोसा नहीं है। "पल में परलय होएगा" का अर्थ है कि जीवन में कुछ भी हो सकता है, इसलिए समय की कीमत समझकर हमें अपने कार्यों को तुरंत करना चाहिए। यह साखी हमें सक्रियता और तत्परता का संदेश देती है।
(ix) जाति न पूछो साधु की, पुछि लीजिए ज्ञान। मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।[HSLC'19]
उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे किताब में स्थित साखी पाठ से लिया गया हैं।
व्याख्या- इस साखी में कबीरदास जी जाति और धर्म के भेदभाव को नकारते हैं। वे कहते हैं कि साधु का ज्ञान महत्वपूर्ण है, न कि उसकी जाति। "तलवार का मोल करो" का मतलब है कि हमें मूल्यवान चीजों की पहचान करनी चाहिए, न कि बाहरी आवरण को। कबीर जी का संदेश है कि ज्ञान सबसे बड़ा है, और इसे जाति या पहचान से नहीं तौला जाना चाहिए।
2. विक्रमी पुरूष के बारे में कर्ण ने क्या कहा है ? [HSLC '11] |
उत्तरः कर्ण ने विक्रमी पुरुष के गुणों का उल्लेख करते हुए कहा कि वह साहसी, धैर्यवान, और पराक्रमी होता है। विक्रमी व्यक्ति अपने कार्यों में संकोच नहीं करता, बल्कि कठिनाइयों का सामना करके आगे बढ़ता है।
3. गुरु शिष्य को किस प्रकार गढ़ते हैं ? [HSLC'16]
उत्तरः गुरु शिष्य को अपने अनुभव और ज्ञान के माध्यम से गढ़ते हैं। जैसे कुम्हार मिट्टी को आकार देता है, वैसे ही गुरु शिष्य के मन और विचारों को सुधारते हैं, उसे सही मार्ग दिखाते हैं और उसकी क्षमताओं को उजागर करते हैं। गुरु का कार्य शिष्य को आत्मज्ञान की ओर ले जाना है, जिससे वह अपनी आत्मा की पहचान कर सके।
अतिरिक्त आवश्यकीय प्रश्न
A. अति संक्षिप्त प्रश्न :
1 . कबीरदास की कविताओं में कौन सी दृष्टि निहित है ?
उत्तरः कबीरदास की कविताओं में मानवता, भक्ति, और ज्ञान की दृष्टि निहित है। उन्होंने सामाजिक भेदभाव को नकारते हुए प्रेम और आत्मा की बात की है।
2. कबीरदास के गुरु कौन थे ?
उत्तरः कबीरदास के गुरु स्वामी रामानंद थे।
3. कबीरदास की रचनाएँ किस नाम से प्रसिद्ध हुई ?
उत्तरः कबीरदास की रचनाएँ "बीजक" नाम से प्रसिद्ध हुई हैं, जिसमें "साखी", "सबद", और "रमैनी" शामिल हैं।
4. कबीरदास ने किस घर को श्मशान बताया है ?
उत्तरः कबीरदास ने उस शरीर को श्मशान बताया है, जिसमें प्रेम का संचरण नहीं होता।
5. कबीरदास ईश्वर का निवास स्थल कहाँ मानते हैं ?
उत्तरः कबीरदास ईश्वर का निवास स्थल व्यक्ति के भीतर मानते हैं।
6. गहरे पानी में बैठने से क्या मिलता है ?
उत्तरः गहरे पानी में बैठने से ज्ञान की प्राप्ति होती है, जो खोजने पर ही मिलती है।
7. कस्तुरी मृग वन-वन में क्या खोजता है ?
उत्तरः कस्तुरी मृग वन-वन में कस्तूरी का सुगंधित पदार्थ खोजता है, जो वास्तव में उसके अपने भीतर होता है।
8. कवि के अनुसार 'मन का फेर' क्या है ?
उत्तरः 'मन का फेर' वह मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति बाहरी प्रथाओं में उलझा रहता है, जबकि उसे अपने मन की स्थिति को सुधारने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
9. प्रेमविहीन शरीर किसके समान होता है ?
उत्तरः प्रेमविहीन शरीर उस लोहे की खाल के समान होता है, जिसमें प्राण नहीं होते।
10, कबीरदास के अनुसार कैसा व्यक्ति वस्तुतः पंडित कहलाने योग्य है ?
उत्तरः कबीरदास के अनुसार वह व्यक्ति पंडित कहलाने योग्य है, जो "ढाई आखर प्रेम" का पाठ पढ़ता है, अर्थात प्रेम और मानवता को समझता है।
11. खाली स्थान भरो :
(i) सत गुरु की ---- अनंत, अनंत किया। अनंत किया ------। ------ अनँत----- अनँत दिखावणहार
उत्तरः महिमा, उपगार।
(ii) बुरा जो ----- मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा ----- , मुझ-सा ---- न कोय ।।
उत्तरः देखन, कोय, आपना, बुरा
(iii) जा घट ----- न संचरै, सो घट जान -----। जैसे खाल -----, साँस लेत ---- प्रान।
उत्तरः प्रेम, मसान, बिनु प्रान
B. संक्षिप्त प्रश्न :
1. गुरु-शिष्य के सम्बन्ध के बारे में कबीरदास का विचार क्या है?
उत्तरः कबीरदास के अनुसार, गुरु-शिष्य का संबंध एक गहरा और आत्मिक होता है। गुरु शिष्य को ज्ञान का प्रकाश प्रदान करता है, जिससे शिष्य अपने भीतर के परमात्मा को पहचान सके। गुरु की महिमा अनंत होती है, और वह शिष्य को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
2. सत गुरु की महिमा के सम्बन्ध में कबीरदास क्या बताते हैं ?
उत्तरः कबीरदास सत गुरु की महिमा को अनंत मानते हैं। वे बताते हैं कि गुरु के द्वारा मिले ज्ञान से शिष्य के अंदर ज्ञान का उदय होता है। गुरु अनंत उपकार करता है, जिससे शिष्य को सत्य और प्रकाश का अनुभव होता है।
3. कबीर के अनुसार दूसरों की बुराई देखना क्यों उचित नहीं है ?
उत्तरः कबीरदास के अनुसार, दूसरों की बुराई देखने से व्यक्ति अपने भीतर की बुराइयों से मुंह मोड़ लेता है। वे कहते हैं कि जब हम अपने दिल में झांकते हैं, तो हमें अपनी बुराइयाँ ही सबसे अधिक दिखाई देती हैं। इसलिए, दूसरों की बुराई पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।
4. प्रेमविहीन शरीर के सम्बन्ध में कबीरदास का विचार क्या है ?
उत्तरः कबीरदास के अनुसार, प्रेमविहीन शरीर व्यर्थ है। प्रेम का अभाव आत्मा को निर्जीव बना देता है, और ऐसे शरीर का कोई वास्तविक मूल्य नहीं होता। प्रेम को वे जीवन का सार मानते हैं, जो आत्मा को जीवन्तता और अर्थ प्रदान करता है।
5. मन के अहंकार को मिटाने के लिए कबीरदास क्या उपदेश देते हैं ?
उत्तरः कबीरदास मन के अहंकार को मिटाने के लिए प्रेम और समर्पण की महत्ता बताते हैं। वे कहते हैं कि मन के अहंकार को छोड़कर आत्म-निरीक्षण करना चाहिए। सच्चे प्रेम की भावना को अपनाने से अहंकार समाप्त होता है और व्यक्ति में वास्तविक ज्ञान और संतोष का अनुभव होता है।
6. 'जैसे खाल लोहार की, साँस लेत बिनु प्रान'। इसमें लोहार के खाल के साथ किसकी और क्यों तुलना की गई थी ?
उत्तरः इस पंक्ति में लोहार की खाल से शरीर की तुलना की गई है। जैसे लोहार की खाल बिना प्राण के निरर्थक है, उसी तरह मनुष्य का शरीर भी बिना आत्मा के अधूरा है। कबीरदास इस पंक्ति के माध्यम से यह समझाना चाहते हैं कि बाहरी रूप और आंतरिक आत्मा का महत्व समान नहीं है; आत्मा का ज्ञान और प्रेम अधिक महत्वपूर्ण है।
7. साधु-संत से हमें किन बातों की खोज करनी चाहिए ?
उत्तरः साधु-संत से हमें ज्ञान, प्रेम, भक्ति, आत्म-निरीक्षण और मानसिक शुद्धि की खोज करनी चाहिए। कबीरदास के अनुसार, साधु का ज्ञान हमें वास्तविकता और जीवन के गूढ़ अर्थों को समझने में मदद करता है, इसलिए हमें साधु के संगति में रहकर सीखना चाहिए।
8. समय से पहले ही किसी काम को करने की सलाह कवि ने क्यों दी है ?
उत्तरः कबीरदास ने समय से पहले काम करने की सलाह इसीलिए दी है क्योंकि वे मानते हैं कि कर्म का सही समय महत्वपूर्ण है। यदि हम समय पर अपने कार्य नहीं करते, तो हमें परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। वे यह संदेश देते हैं कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन समय पर करना चाहिए ताकि किसी प्रकार की विफलता या पछतावे से बच सकें।
C. विवरणात्मक प्रश्न :
1.कबीरदास के जीवन के सम्बन्ध में एक संक्षिप्त लेख लिखो।
उत्तरः संत कबीरदास का जन्म सन् 1398 में काशी में एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ। जन्म के तुरंत बाद माँ ने उन्हें छोड़ दिया, और उन्हें नीरू और नीमा नामक मुसलमान जुलाहे ने अपनाया। कबीर का अर्थ 'महान' है। उन्होंने स्वामी रामानंद से दीक्षा ली और निर्गुण निराकार 'राम' की उपासना की। कबीर ने अपनी रचनाओं में सरल भाषा का प्रयोग किया और समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी रचनाएँ, जैसे 'बीजक', 'साखी', 'सबद', और 'रमैनी', आज भी प्रासंगिक हैं। 1518 में उनका देहावसान मगहर में हुआ।
2. कबीरदास की साखियों में निहित संदेशों के बारे में लिखो।
उत्तरः कबीरदास की साखियों में ज्ञान, प्रेम, भक्ति, आत्मा और परमात्मा के संबंध में गहन विचार प्रस्तुत किए गए हैं। वे मानवता को जाति-पाँत से ऊपर उठकर ज्ञान और प्रेम के आधार पर देखने का उपदेश देते हैं। साखियाँ आत्म-निरीक्षण, मानसिक शुद्धि, और वास्तविकता के प्रति जागरूकता पर बल देती हैं। उनका मुख्य संदेश है कि सच्चा ज्ञान और प्रेम ही मानव जीवन का सार है।
3. कबीरदास जी ने पोथी पढ़ने, माला फेरने और जात-पाँत की बात पूछने के संदर्भ में क्या-क्या कहा है ?
उत्तरः कबीरदास जी ने पोथी पढ़ने को निरर्थक बताया है जब तक कि उसमें सच्चा प्रेम न हो। वे कहते हैं कि केवल पुस्तक ज्ञान से कोई पंडित नहीं बनता; असली ज्ञान प्रेम में है। माला फेरने का भी यही संदर्भ है; यदि मन का ध्यान इधर-उधर है, तो माला फेरने का कोई मतलब नहीं। जात-पाँत के बारे में कबीरदास का मानना है कि हमें साधु की पहचान उसके ज्ञान से करनी चाहिए, न कि उसकी जाति से। उनका यह संदेश है कि बाहरी पहचान की तुलना में आंतरिक ज्ञान और प्रेम अधिक महत्वपूर्ण है।
4. आशय स्पष्ट करो
(क) 'तेरा साई तुज्झ में, ज्यो पुहुपन में बास।'
उत्तरः इस पंक्ति का आशय यह है कि जैसे पुष्प में उसकी सुगंध होती है, उसी तरह परमात्मा हमारे भीतर निवास करता है। यह एक गहन आध्यात्मिक सत्य है कि भगवान हमारी आत्मा में विद्यमान हैं, और हमें अपने भीतर की उस दिव्यता को पहचानना चाहिए।
(ख) 'ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।'
उत्तरः इस पंक्ति का आशय यह है कि प्रेम सबसे बड़ा ज्ञान है। यदि कोई व्यक्ति प्रेम को समझता है, तो वही असली ज्ञानी या पंडित है। कबीरदास का यह संदेश है कि केवल किताबों से ज्ञान प्राप्त नहीं होता, बल्कि प्रेम की अनुभूति और समझ असली ज्ञान का आधार है।
(ग) 'जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय।'
उत्तरः इस पंक्ति का अर्थ है कि जब हम अपने दिल की गहराई में जाकर अपनी बुराइयों को पहचानते हैं, तो हम समझते हैं कि हमारे भीतर की बुराई किसी और में नहीं है। यह आत्म-निरीक्षण की आवश्यकता को दर्शाता है, जो व्यक्ति को अपने अंदर की असलियत को पहचानने में मदद करता है।
5.प्रस्तुत साखी के आधार पर कबीरदास के जीवन-दर्शन सम्बन्धी विचार के बारे में लिखो।
उतर कबीरदास का जीवन-दर्शन भक्ति, प्रेम, और आत्म-ज्ञान के चारों ओर घूमता है। वे जात-पात, बाहरी पहचान, और पंडिताई के दिखावे के खिलाफ थे। उनका मानना था कि सच्चा ज्ञान और प्रेम ही जीवन का वास्तविक अर्थ है। कबीरदास ने साधना और आंतरिक शुद्धता पर जोर दिया। वे व्यक्ति को अपने भीतर की बुराइयों को पहचानने और सच्चे प्रेम की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देते हैं। उनका दृष्टिकोण मानवता, समानता, और प्रेम की आवश्यकता को उजागर करता है।
6. गुरु के सम्बन्ध में कबीरदास का विचार कैसा है ?
उत्तरः कबीरदास जी गुरु को सर्वोच्च महत्व देते हैं। वे मानते हैं कि गुरु सच्चे ज्ञान का स्रोत हैं और उन्हें जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने में मदद करते हैं। कबीर के अनुसार, गुरु के माध्यम से ही शिष्य को आत्मा और परमात्मा के संबंध का ज्ञान प्राप्त होता है। गुरु का कार्य शिष्य को सही मार्ग पर चलाना और उसके भीतर की खामियों को दूर करना है। कबीरदास ने गुरु की महिमा का बखान किया है और उन्हें ईश्वर के समकक्ष मानते हैं।
7. सप्रसंग व्याख्या करो :
(i) जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान। मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ।।
उत्तरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे किताब में स्थित साखी पाठ से लिया गया हैं।
व्याख्या- इस साखी में कबीरदास जी जाति-व्यवस्था के निरर्थकता को उजागर करते हैं। वे कहते हैं कि हमें साधु (संत) की पहचान उसकी जाति से नहीं, बल्कि उसके ज्ञान और समझ से करनी चाहिए। ज्ञान ही असली मूल्य है, जैसे तलवार का मूल्य उसकी धार में है, न कि उसके म्यान में। म्यान का उपयोग केवल तलवार को रखने के लिए होता है, लेकिन उसकी असली महत्ता तब होती है जब वह उपयोग में आती है। इस प्रकार, कबीर जी का यह संदेश है कि ज्ञान और आचरण से भरा व्यक्ति ही सच्चा संत है, चाहे उसकी जाति कुछ भी हो।
(ii) जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ। जो ब्यौरा डूबन डरा, रहा किनारे बैठ ।।
उतरः प्रसंग- यह वाक्य हमारे किताब में स्थित साखी पाठ से लिया गया हैं।
व्याख्या- इस पंक्ति का अर्थ है कि जो लोग सत्य और आत्मा की खोज में गहरे उतरते हैं, वे ही उसे प्राप्त करते हैं। "गहरे पानी पैठ" का तात्पर्य है कि सच्चा ज्ञान और आत्मा की पहचान केवल गहरी साधना और प्रयास से ही संभव है। दूसरी ओर, "जो बौरा डूबन डरा, रहा किनारे बैठ" यह दर्शाता है कि जो लोग भय या संकोच के कारण साधना में आगे नहीं बढ़ते, वे केवल किनारे पर बैठे रहते हैं और सत्य को नहीं पा सकते। कबीर जी इस पंक्ति के माध्यम से यह सिखाते हैं कि आत्मा की खोज के लिए साहस और गहराई में उतरने की आवश्यकता है।
Answer by Reetesh Das (MA in Hindi) And Dikha Bora
Edit By Dipawali Bora (23.04.2022)
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